2007 से ब्लॉगिंग में सक्रिय हूं। कई दिन तक अकेले लिखते लिखते आखिर लगा कि मैं अकेला ही क्यों पीडि़त रहूं, सो अपनी जमात बढ़ाने की कोशिश करने लगा। हालांकि अकेले लिखने के कुछ फायदे भी हैं, मसलन मेरे एक भाईसाहब गूगल में डिस्टिंगुइश इंजीनियर हैं। अमरीका से कुछ दिन के लिए बीकानेर आए, मैं मिलने के लिए पहुंचा तो बोले कि तुम्हारा ब्लॉग पढ़ता रहता हूं। आप यकीन नहीं कर सकते कि मेरी खुशी का क्या ठिकाना रहा होगा। मैंने पूछा आपको कैसे पता, दुनिया में लाखों ब्लॉग हैं फिर आपको मेरा ब्लॉग कैसे मिला, उन्होंने जवाब दिया कि बीकानेर में ब्लॉग लिखने वाले और उनमें भी हिन्दी लिखने वाले बहुत कम है (यह वर्ष 2008 की बात है)
हालांकि एकछत्र राज्य का आनन्द ही अलग है फिर भी यह कसक थी कि अकेला भुगत रहा हूं सो अपनी जमात बढ़ाने के प्रयास करता रहा। पिछले दिनों दो ऐसे लोगों को जमात में शामिल कर लिया है जो धुरंधर लिक्खाड़ हैं और अब तक नेट के इस माध्यम को पेचकस से अधिक उपयोगी नहीं मान रहे थे। मैंने इस टूल का नया आयाम उन्हें पकड़ाने का प्रयास किया है। एक ने बिना नाम तो दूसरे ने अपने नाम के साथ लिखने पर हामी भरी है और यकीन मानिए शानदार लिख रहे हैं।
पहला ब्लॉग है नचिकेता का (इन्होंने इसी नाम से लिखने की ठानी है)। यम और नचिकेता संवाद पर आधारित यह ब्लॉग नचिकेता के लेखक भारतीय राजनीति पर अच्छी पकड़ रखते हैं। इस ब्लॉग में वे लगातार भीषण व्यंग्य लिख रहे हैं। अब नाम किसी को पता नहीं है तो जमकर पिलाई कर रहे हैं नेताओं की और व्यवस्था की। आप भी देखिए।
जिनेश जैन (यह लिंक है)
दूसरा ब्लॉग है राजस्थान पत्रिका के संपादकीय प्रभारी जिनेश जैन का। उन्होंने अपने ही नाम से ब्लॉग बना लिया है और लिखना शुरू किया है। एक बार पत्रिका ऑफिस में रात दो बजे हमारी बाचतीत के दौरान यह निर्णय हुआ कि एक बाहरी व्यक्ति बीकानेर को कैसे देखता है और उसकी तुलना अगर देश के अन्य शहरों (जहां जिनेश जैन रह चुके हैं) की तुलना में यह कैसे लगता है, इस पर एक पूरा ब्लॉग हो और समय के साथ इसमें नए लेख जुड़ते जाएं। उन्होंने अब तक कुल जमा पांच पोस्ट लिखी है, लेकिन हर एक पोस्ट बीकानेर के बारे में विस्तार से जानकारी देती है और यह भी कि यह शहर चंडीगढ़, बीकानेर, कानपुर, भोपाल या देश के कई दूसरे शहरों की तुलना में कैसे अलग है।