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शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

हमें मंच पर नाचते बाबा ही पसंद हैं...

healthmystic.-yoga-baba-ramdev-jiआज जैसे ही कोई योग, आसन या प्राणायाम की बात करता है तो तुरंत दिमाग में मंच पर नौली क्रिया करते अथवा नाचते रामदेव बाबा दिखाई देते हैं। यह एक ओर बाबा की सफलता है तो दूसरी ओर हमारी गलती। हमने हमारे योग को सही तरीके से समझा नहीं और लगे कसरत करने। आज की तारीख में योग कर रहे सौ लोगों को पूछा जाए कि आप योग क्‍यों करते हैं तो पचानवे प्रतिशत लोगों के संभावित जवाबों में फिट रहना, बीमारी से लड़ना या तनाव को दूर करने का प्रयास करना जैसे जवाब शामिल होंगे। क्‍या योग फिजिकल फिटनेस का काम करता है। क्‍या यह कसरत का एक रूप है।

कम से कम मुझे तो नहीं लगता। ऋषि पातंजलि ने अपने पहले श्‍लोक में स्‍पष्‍ट किया है कि योग चित्‍त की वृत्तियों का निरोध करता है। कुछ लोगों ने योग को जोड़ से भी जोड़ा है। इसमें अच्‍छी और खराब एनर्जी के मिलन से लेकर शरीर और आत्‍मा तक के मिलन को जोड़ दिया है। पर चित्‍त की वृत्तियों के निरोध के लिए किया जा रहा योग, शरीर को वहां कैसे लेकर जा रहा है। यह समझ में नहीं आता।

योग पर कुछ बात करने से पहले क्‍यों न बाबा की कुछ तारीफ कर ली जाए। बाबा रामदेव ने “आधुनिकता” की रौ में बह रहे भारतीय समाज को बेहतर तरीके से पकड़ा और प्रचार के जोर को भी समझा। स्‍टेज पर मुंहफट अंदाज में बोलना और रिसर्च पेपर लेकर अपनी बात सिद्ध करने के लिए चिकित्‍सकों तक की मदद लेने के अंदाज ने भारतीय जनमानस को जोरदार तरीके से प्रभावित किया। उन्‍होंने योग को आध्‍यात्मिक उत्‍थान के बजाय शारीरिक सौष्‍ठव और सुंदरता से जोड़ दिया। हालांकि इसे भी प्राथमिकता पर नहीं रखा और इससे एक कदम आगे जाकर उन्‍होंने कहा कि इससे भीषण होती जा रही बीमारियों और बुढ़ाते शरीर को भी दुरुस्‍त किया जा सकता है। बीकानेर के छोटा शहर है। इसके बावजूद मैंने साठ पार के पचासों लोगों को सार्वजनिक पार्कों में सुबह सुबह बैठकर योग और प्राणायाम करते हुए देखा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बाबा रामदेव ने लोगों में एक नई जान फूंक दी। पश्चिम के मार्केटिंग हथियारों से ही पश्चिम की कंपनियों को चित्‍त करते हुए उन्‍होंने लोगों को विश्‍वास दिलाया कि प्राचीन भारतीय पद्धतियां ही तुम्‍हारी रक्षा कर सकती है। लोग भी उतर गए मैदान में। बस, यही बाबा की कमाई का आधार है, एक तरफ योग (आसन और प्राणायाम) सिखाते हैं और दूसरी तरफ स्‍वस्‍थ्‍य बने रहने के लिए दवाएं बेचते हैं। मेरे निजी सूत्रों के अनुसार बाबा रामदेव की दिव्‍य फार्मेसी सहित तीन दवा कंपनियां 2400 करोड़ से अधिक कीमत की हैं। बाबा ने उपेक्षित ग्‍वारपाठे और लौकी को प्रचलन में ला दिया है। भारतीय योग शिक्षा के लिए मैं बाबा रामेदव के प्रयास की जितनी सराहना करूं, उतनी कम है।

अब इसके दूसरे पक्ष को देखने की कोशिश करें तो पता चलेगा कि बाबा ने कितना बड़ा नुकसान किया है। पश्चिम के लोगों ने योग को जिस तरीके से समझा, वह उनकी भौतिक सोच का नतीजा था, लेकिन भारत में योग की एक सतत धारा बह रही थी, उसे बाबा रामदेव ने बुरी तरह झकझोर दिया है।

योग जीवन के हर हिस्‍से में है। कहीं यह प्रेमयोग है तो कहीं कर्मयोग, भक्तियोग, क्रियायोग, ज्ञानयोग या हठ योग। योग के शारीरिक कसरत के रूप में पेश कर बाबा रामदेव ने हठ योग को ही योग का पर्याय बना दिया। चित्‍त की वृत्तियों के निरोध का दर्शन कहीं पीछे दबकर रह गया है। योग के नाम पर अब कसरत बाकी रही है...

 सिर्फ हठ योग के रूप में योग को पेश करने का एक दुष्‍परिणाम यह भी हुआ कि केन्‍द्र सरकार ने योग और हैल्‍थ क्‍लब को एक ही श्रेणी में डाल दिया।
...और तो और इस पर दस प्रतिशत कर भी लगा दिया है।

हो सकता है बाबा रामदेव खुशी से यह टैक्‍स चुका रहे हों, क्‍योंकि किसी भी मंच पर आजतक उन्‍होंने इस कर का विरोध नहीं किया है, लेकिन श्रीश्री रविशंकर का आर्ट ऑफ लिविंग भी इसकी जद में आ गया है। वे अपने तीन से सात दिनों के शिविरों में क्रियायोग का अभ्‍यास कराते हैं। केन्‍द्र सरकार के अनुसार यह क्रिया योग भी हैल्‍थ क्‍लब एक्टिविटी है और इस कारण शिविर में ली जाने वाली फीस पर दस प्रतिशत कर लगने लगा है। करीब सालभर पहले बीकानेर में श्री श्री रविशंकर का कार्यक्रम हुआ था। इससे पहले आर्ट ऑफ लिविंग की एज्‍युकेशन विंग के निदेशक मुरलीधर कोटेश्‍वर बीकानेर आए थे। सामान्‍य इंटरव्‍यू के बाद सामान्‍य बातचीत में उन्‍होंने इस कर के बारे में जानकारी दी। आप भी इस कर के बारे में देख सकते हैं।

yoga tax

(ऊपर दिए गए चित्र पर क्लिक करें। केन्‍द्र सरकार की वेबसाइट पर पूरी जानकारी मिल जाएगी)

सरकार आमतौर पर ऐसे साधनों पर कर की प्रताड़ना जारी करती है, जिन कामों को वह रोकना चाहती है। जैसे शराब, सिगरेट या विदेशों से लाई जाने वाले उत्‍पाद। ऐसे मेंयोग पर टैक्‍स किस कोण से लगाया गया है, यह समझना अभी बाकी है। दुनिया के अधिकांश देशों में जहां योग को प्रमुख रूप से अपनाया जा रहा है, वहां की सरकारों ने न केवल योग को करमुक्‍त रखा है, बल्कि इसके विकास और शोध के लिए अच्‍छा खासा धन भी व्‍यय कर रही है। विदेशों में चल रहे प्रयासों की एक बानगी यहां, यहां और यहां सहित इंटरनेट के कई ठिकानों पर देख सकते हैं। केवल सरकार के ही प्रयास नहीं, कई बड़े संस्‍थान भी अपने स्‍तर पर जी तोड़ प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में भारत सरकार टैक्‍स लगाकर योग को दबाने की जुगत लगा रही है। है ना मूर्खतापूर्ण, लोकसभा में एक विशेष कक्षा सभी सांसदों के लिए लगनी चाहिए - योग की...

... योग के पातंजलि पक्ष और अनुलोम विलोम पर अगली किसी पोस्‍ट में चर्चा करेंगे।

सोमवार, 9 जुलाई 2012

प्रिय शिव, भोले हो पर गजब के हो...

yoga-shiva
श्रावण मास में शिव खुद ब खुद याद आने लगते हैं। स्‍वभाव से भोले, गायों (संपदा) की रक्षा करने वाले और शीघ्र प्रसन्‍न होने वाले प्रिय शिव भक्‍तों की पुकार पर दौड़कर आते हैं। मैंने-आपने उन्‍हें देखा नहीं है, महसूस तो किया ही होगा। मैंने महसूस किया है, इतना करीब कि बता सकता हूं।
करीब पंद्रह साल पहले हमें योगीराज (उनका मूल नाम सुनील शर्मा था, जो मुझे बाद में पता चला) के पास भेजा गया। वे हमें हठ योग सिखाते थे। 5 फीट 9 इंच ऊंचाई के साथ मेरा वजन बिना वर्जिश किए 84 किलोग्राम तक पहुंच गया था। पेट पर हाथ मारते तो कई देर तक हिलता रहता था। मैंने योगीराज से कहा कि मुझे वजन कम करना है। उन्‍होंने मुस्‍कुराते हुए पूछा वजन कम करना है या पतला होना है। मैंने कहा 84 किलोग्राम वजन है। उन्‍होंने कहा अभी एक किलोग्राम और बढ़ाना पड़ेगा। मेरी आंखे दीवार की दरार की तरह थीं। हंसने पर तो दिखाई देना भी बंद जाता था। मुझे दिखाई नहीं दिया कि योगीराज भी हंस रहे हैं या नहीं...
उन दिनों बाबा रामदेव का कहीं नामो निशान भी नहीं था। ऐसे में केवल एक ही प्राणायाम था जिसे विवेकानन्‍द ने अपने राजयोग में बताया था। वह था अनुलोम विलोम। सुबह पहले सूक्ष्‍म व्‍यायाम होते थे। इसमें शरीर को पर्याप्‍त मात्रा में हिलाया जाता। सूक्ष्‍म व्‍यायाम के बाद सूर्य नमस्‍कार। शरीर की इन मामूली हरकतों से भी सर्दियों की सुबह सवा पांच बजे पसीना निकल आता था। इसके बाद आसन और आखिर में प्राणायाम।
सूक्ष्‍म व्‍यायाम और प्रणायाम कोई भी कर सकता है, लेकिन आसन, वे तो तोड़कर रख देते हैं। हर आसन मेरे लिए नई चुनौती लेकर आता। कुछ दिन में जब आसन लगने लगता तो योगीराज अगला आसन बता देते। पद्मासन, मत्‍स्‍यासन, अर्द्धमत्‍यासन, भुजंगासन, पर्वतासन तो मैंने किसी तरह आगे पीछे करके कर लिए। इसके बाद आया एक बहुत ही आसान आसन। वह था वज्रासन। मैंने समझा यह आसन कराना तो फिजूल है। सभी आराम से बैठ गए हैं। इसी आसन की अगली कड़ी था सुप्‍त वज्रासन।
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(इस चित्र में वज्रासन की एक्‍सट्रीम स्थिति दिखाई गई है। इससे पूर्व कुछ आसान प्रकार भी होते हैं। जैसे ये नीचे वाला)
Supta-Vajrasana
देखने में यह ऊपर वाली स्थिति से आसान दिखाई दे रहा होगा, लेकिन कल्‍पना कीजिए एक मोटे व्‍यक्ति की, जिसकी जांघे उसके शरीर के कुल भार के बराबर हों। ऐसी स्थिति में वज्रासन में सीधा बैठना आसान है। पीछे तरफ झुकने की भी कल्‍पना नहीं की जा सकती। योगीराज पास में आए। उन्‍होंने एक-दो बार पीठ के पीछे हाथ रखकर मुझे सहारे से लिटाने का प्रयास किया, फिर छोड़ दिया। कहा क्‍लास के बाद मुझसे मिलकर जाना। उन्‍होंने मुझे एक कागज पेन दिया और कहा कि लिखो। उन्‍होंने शंख प्रक्षालन की विधि बताई। कहा दो दिन यहां आना मत। शंख प्रक्षालन करो और एक दिन का आराम करो, फिर लौटकर आना। घर आया और शंख प्रक्षालन में जुट गया। इसमें नमक मिला पानी पीना होता है और भुजंग आसन सहित चार आसान आसन बार बार करने होते हैं। हर बार एक गिलास पानी पीने के बाद चारों आसन। छह गिलास पीने तक तो कुछ महसूस नहीं हुआ, लेकिन जब सातवीं गिलास पानी पी रहा था, तो अचानक तेज प्रेशर महसूस हुआ। लैट्रीन की ओर भागा। मुझे बीस गिलास तक यह क्रिया दोहरानी थी। हर बार एक गिलास पानी पीने के बाद दौड़ना पड़ रहा था। बस राहत की बात इतनी ही थी कि घर में इटैलियन कमोड था। अगर नीचे बैठने की प्रक्रिया दोहरानी पड़ती तो शंख प्रक्षालन से पहले उठक बैठक से ढेर हो चुका होता। आखिर बीसवें गिलास तक यह स्थिति हो गई कि जैसा पानी पी रहा था, साफ सुथरा, वैसा ही निकाल रहा था। (इसे कहते हैं शंख प्रक्षालन, मेरी आंतों को नमक मिले पानी ने धो दिया था) अब मैं काफी हल्‍का और थका हुआ महसूस कर रहा था। अगले दिन आराम किया और तीसरे दिन पहुंचा तो फिर वही सुप्‍त वज्रासन। दूसरे पुराने विद्यार्थी आसानी से आसन कर रहे थे और मैं उन्‍हें देख भर रहा था। आंतें साफ हो चुकने के बाद पीछे की ओर झुकने की स्थिति नहीं बन पा रही थी। 19 साल तक जिस कमर को ठोस बनाया था, वह मुड़ने को तैयार नहीं हो रही थी। सभी को आसन की मुद्रा से हटने को कहा गया और योगीराज ने सभी को एक बात बताई कि :-
“शिव का योगीराज कहा जाता है। जानते हो इसका कारण क्‍या है। किसी को नहीं पता था। योग गुरु ने बताया कि
शिव ने विश्‍व में पाई जाने वाली कुल जमा 84 लाख योनियों के अनुरूप 84 लाख आसनों को सिद्ध किया है। इसलिए वे योगीराज हैं।”
(किसी भी हठ योगी को एक आसन सिद्ध करने में कई बार सालों लग जाते हैं। आसन सिद्ध होने का अर्थ होता है करीब साढ़े तीन घंटे उसी एक आसन में बैठे रहना। आसन सिद्ध तभी समझा जाता है जबकि योगी को उस आसन में बैठने में किसी प्रकार की कठिनाई महसूस न हो)
मैं रोमांचित था इस बात को सुनकर। सभी विद्यार्थी फिर सुप्‍त वज्रासन में जुट गए। मैं अब भी सुप्‍त वज्रासन नहीं कर पा रहा था। इस बार योगीराज ने मेरी सहायता नहीं की। बस इतना भर कहा कि शिव का ध्‍यान करो। मैंने आंखें बंद की और खिलंदड़ शिव दिखाई दिए। सुप्‍त वज्रासन करते हुए। मेरे चेहरे पर मुस्‍कुराहट आई और मैं पीछे की ओर लेट गया। लेटे लेटे मैंने आंखे खोली तो देखा कि सिर की ओर योगीराज (योग गुरु) खड़े हैं और मुस्‍कुरा रहे हैं। धीरे से बोले, जितना असर तुममें दिखाई दिया है किसी और में नहीं दिखा।
उस दिन से आज भी मेरे दिमाग में शिव की वही छवि है। कोई दूसरी छवि बैठ भी नहीं पाई। अब भी ध्‍यान करने बैठता हूं तो अनुलोम विलोम के पूरक, कुंभक और रेचन में एक, चार और दो के अनुपात को बनाए रखने के लिए ऊं नम: शिवाय का मंत्र बोलता हूं। एक बार के लिए एक, चार बार के लिए चार बार और दो बार के लिए दो बार मंत्र का जाप। इससे ध्‍यान भी जल्‍दी लगता है।
आष्‍टांग योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्‍याहार, धारणा, ध्‍यान और समाधि ये आठ भाग हैं। ये मन को स्थिर करते हैं। चूंकि शिव इन सभी के लिए कृपा करते हैं, इसलिए कहते हैं शिव की उपासना करने से मन को मजबूती मिलती है...