मैंने उसके बारे में पता किया। पहले बीकानेर में चित्रकला में स्नातक किया। बाद में एमएफए करने के लिए जयपुर चला गया था। दिल्ली और मुम्बई में कई अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनियों का आयोजन करने के बाद उन दिनों बीकानेर में खाली बैठा था। जब वह अपनी रचनात्मकता के शीर्ष पर होता है तो सब काम धंधे छोड़कर खाली बैठ जाता है। बस सोचता रहता है। यह उसने बाद में बताया।
स्कूल के दिनों में वह काला और भद्दा था। पूरे चेहरे में केवल उसकी आंखें ही ऐसी थी जिन्हें आकर्षक कहा जा सकता है। आज बीस साल पीछे की ओर झांकता हूं तो लगता है कि उसने अपनी आंखों की चमक को बचाए रखा है। शायद बढ़ भी गई है। एक वही तो था जिसने अपने दिल की आवाज को सुना और उसी के रास्ते पर निकल पड़ा। छठी कक्षा में वह पूरे दिन चित्र बनाया करता था। अमिताभ बच्चन का वह जबरदस्त फैन था। सो पहले एक सादे कागज पर ग्राफ बनाता और एक सस्ता फोटो लेकर ग्राफ वाले कागज पर उसकी नकल बनाता था। दूसरे लड़के बहुत प्रभावित होते। मैं मुंह बना देता... इसमें क्या खास है। कोई भी बना सकता है। और चंपक में आए कार्टून मैं भी बना देता। सर से गुड भी मिल जाता। बाद में मैं चूहा दौड़ में शामिल हो गया और वह विशिष्ट बनता गया। पहली मुलाकात में हुई मुक्का लात के बाद में उसे मनाया और कहा कि मेरा भी एक पोर्टेट बना दे। यह बिल्कुल ऐसा आग्रह था जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर की फैशन डिजाइनर को पजामा सिलने के लिए दे दिया जाए। योगेन्द्र मुझे जानता था, सो मेरी बात का बुरा नहीं माना। बस टालता रहा। आज उसने एक गिफ्ट भेजा है। वही पोर्टेट.. अभी मैंने उससे बात नहीं की है, लेकिन शायद वह मेरी टकले वाली छवि को पसन्द नहीं करता था, सो अच्छी तस्वीर का इंतजार कर रहा था। मेरे तस्वीर बदलने के बाद उसने पोर्टेट बनाकर भेज दिया है। आप भी देखिए कैसा है...
छठी कक्षा में तो शायद उसे कुछ नहीं आता था, लेकिन बीस सालों की साधना के बाद कुछ तो निखार आया होगा.. मेरा तो अभ्यास छूट गया है।
योगेन्द्र अब बच्चों को सिखाता भी है। पिछले दिनों पत्रिका इन एज्युकेशन के समर स्कूल में उसने कई बच्चों को सीधी लकीरें खींचना सिखाया। उसका एक फोटो उसकी आईडी में से उठाकर लगा रहा हूं...
अपने शिष्यों के बीच खड़ा है बाएं से तीसरा... मुझे तो वह अब भी बच्चा ही लगता है...
