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शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

माइक्रो कचौरी - मेडिकेटेड है भाई...

बीकानेर के लोगों को खाने, खिलाने और विशिष्‍ट खाद्य उत्‍पादों का ऐसा शौक है कि पूछिए मत। खाने के मामले में मैं खुद भी कोई अपवाद नहीं हूं। अगर आप बीकानेर से बाहर के हैं तो आपने भुजिया के दो या तीन टेस्‍ट लिए होंगे, लेकिन बीकानेर में क्षेत्र और हलवाई की खासियतों के हिसाब से सौ से अधिक तरह के भुजिया बनते हैं, और हां, खाने के शौकीन लोग थोड़े से भुजिया चखकर बता सकते हैं कि आप कौनसी दुकान से भुजिया लाए हैं... इस पर पूरी किताब हो सकती है, लेकिन अभी बात मेडिकेटेड कचौरी की...

सुनने में ऐसा लगता है कि कचौरी बनाने के बाद उसका स्‍टरलाइजेशन किया गया होगा, लेकिन वास्‍तव में ऐसा नहीं है। संभाग के सबसे बड़े अस्‍पताल प्रिंस बिजय सिंह मैमोरियल अस्‍पताल के पास एक बाबा है, कचौरी वाला। अपेक्षाकृत कम मसाले, नमक और तेल भी कम (? पता नहीं कैसे) वाली कचौरी बनाता है। इसकी ढेरों कचौरियां खाने से चिकित्‍सक भी परहेज नहीं करते। दो सौ से अधिक चिकित्‍सकों और करीब एक हजार स्‍टाफ वाले अस्‍पताल में लंच टाइम में चाय के साथ हर कहीं बाबे की कचौरी मिल जाएगी। इसकी कीमत महज एक रुपया है, कीमत कम होने का खामियाजा कचौरी को ही भुगतना पड़ता है, अपने साइज के साथ कांप्रोमाइज करके। आप खुद ही देख लीजिए...

kachori

मेरी अंगुली और अंगूठे के बीच में कचौरी ही है। वर्ष 1995 में मैंने पहली बार यह कचौरी खाई तो यह 50 पैसे में मिलती थी, इसके बाद कीमत बढ़ाई गई और लोगों ने सहर्ष बढ़ी हुई कीमत को स्‍वीकार किया, लेकिन अब पिछले दस साल से बाबा कचौरी का साइज छोटा और छोटा होता गया और अब इस वर्तमान स्‍वरूप में पहुंच गई है। मैंने बाबे से कहा कि अब भाव दोगुना कर दो, यानी दो रुपया, लेकिन बाबा ने मना कर दिया, बोले सामने वाले लूट खाएंगे ग्राहकों को... बात उलझ गई।

दरअसल इस माइक्रो इकोनॉमी में कुछ ऐसे तत्‍व घुस आए हैं तो क्‍वालिटी और साफ सफाई से समझौता कर बाबे की कचौरी जैसी ही दिखने वाली कचौरियां बनाने लगे हैं। घटिया तेल, घटिया मैदा, घटिया मसाले इस्‍तेमाल कर ये लोग बाबे की क्रेडिट को भुना रहे हैं। अब जब तक बाबा अपनी कचौरी की कीमत को कम रखेगा, ये लोग अधिक नुकसान नहीं कर पाएंगे, इसके चलते बाबा ने कचौरी की कीमत को कम ही बना रखा है। पिछले तीन सालों में महंगाई बढ़कर दोगुनी से अधिक हुई तो कचौरी का साइज भी आधे से कम हो गया है। पता नहीं यह सूक्ष्‍य इकोनॉमी कितनी सूक्ष्‍म हो पाएगी।

वैसे आजकल आता क्‍या है एक रुपए में, बीकानेर के लोग कह सकते हैं एक स्‍वादिष्‍ट कचौरी... Smile 

रविवार, 25 सितंबर 2011

दो बहुत शानदार ब्‍लॉग

2007 से ब्‍लॉगिंग में सक्रिय हूं। कई दिन तक अकेले लिखते लिखते आखिर लगा कि मैं अकेला ही क्‍यों पीडि़त रहूं, सो अपनी जमात बढ़ाने की कोशिश करने लगा। हालांकि अकेले लिखने के कुछ फायदे भी हैं, मसलन मेरे एक भाईसाहब गूगल में डिस्टिंगुइश इंजीनियर हैं। अमरीका से कुछ दिन के लिए बीकानेर आए, मैं मिलने के लिए पहुंचा तो बोले कि तुम्‍हारा ब्‍लॉग पढ़ता रहता हूं। आप यकीन नहीं कर सकते कि मेरी खुशी का क्‍या ठिकाना रहा होगा। मैंने पूछा आपको कैसे पता, दुनिया में लाखों ब्‍लॉग हैं फिर आपको मेरा ब्‍लॉग कैसे मिला, उन्‍होंने जवाब दिया कि बीकानेर में ब्‍लॉग लिखने वाले और उनमें भी हिन्‍दी लिखने वाले बहुत कम है (यह वर्ष 2008 की बात है)

हालांकि एकछत्र राज्‍य का आनन्‍द ही अलग है फिर भी यह कसक थी कि अकेला भुगत रहा हूं सो अपनी जमात बढ़ाने के प्रयास करता रहा। पिछले दिनों दो ऐसे लोगों को जमात में शामिल कर लिया है जो धुरंधर लिक्‍खाड़ हैं और अब तक नेट के इस माध्‍यम को पेचकस से अधिक उपयोगी नहीं मान रहे थे। मैंने इस टूल का नया आयाम उन्‍हें पकड़ाने का प्रयास किया है। एक ने बिना नाम तो दूसरे ने अपने नाम के साथ लिखने पर हामी भरी है और यकीन मानिए शानदार लिख रहे हैं।

 पहला ब्‍लॉग है नचिकेता का (इन्‍होंने इसी नाम से लिखने की ठानी है)। यम और नचिकेता संवाद पर आधारित यह ब्‍लॉग नचिकेता  के लेखक भारतीय राजनीति पर अच्‍छी पकड़ रखते हैं। इस ब्‍लॉग में वे लगातार भीषण व्‍यंग्‍य लिख रहे हैं। अब नाम किसी को पता नहीं है तो जमकर पिलाई कर रहे हैं नेताओं की और व्‍यवस्‍था की। आप भी देखिए।

 

जिनेश जैन (यह लिंक है)

दूसरा ब्‍लॉग है राजस्‍थान पत्रिका के संपादकीय प्रभारी जिनेश जैन का। उन्‍होंने अपने ही नाम से ब्‍लॉग बना लिया है और लिखना शुरू किया है। एक बार पत्रिका ऑफिस में रात दो बजे हमारी बाचतीत के दौरान यह निर्णय हुआ कि एक बाहरी व्‍यक्ति बीकानेर को कैसे देखता है और उसकी तुलना अगर देश के अन्‍य शहरों (जहां जिनेश जैन रह चुके हैं) की तुलना में यह कैसे लगता है, इस पर एक पूरा ब्‍लॉग हो और समय के साथ इसमें नए लेख जुड़ते जाएं। उन्‍होंने अब तक कुल जमा पांच पोस्‍ट लिखी है, लेकिन हर एक पोस्‍ट बीकानेर के बारे में विस्‍तार से जानकारी देती है और यह भी कि यह शहर चंडीगढ़, बीकानेर, कानपुर, भोपाल या देश के कई दूसरे शहरों की तुलना में कैसे अलग है।