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शनिवार, 4 जुलाई 2009

चल मालिश करा के आते हैं!!?

छोटी काशी बीकानेर में हमेशा ही कुछ न कुछ धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। कुछ बड़े तो कुछ छोटे। एक बार एक महाराज आए। प्रखर जी महाराज। उन्‍होंने बीकानेर के धरणीधर महादेव मंदिर में 1008 कुण्‍डीय महायज्ञ शुरू किया था। एक महीने तक मंदिर के पास की सूखी हुई तलाई में होने वाले कार्यक्रम के लिए तलाई को पूरी तरह बालू मिट्टी से ढंक दिया गया। एक बड़ा सभागार बनाया गया। अस्‍थाई सभागार बड़ा मनोरम था। पास ही प्रखरजी महाराज की कुटिया भी बनाई गई। हजारों लोग तलाई का बदला हुआ रूप देखने पहुंचने लगे। बीकानेर के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के 1008 जोड़ों ने इस महायज्ञ के लिए पंजीकरण करा लिया था। आयोजन शुरू होने से पहले उसका जबरदस्‍त प्रचार किया गया कि यज्ञ में धन की आहूति देने वाले लोगों को गजब का पुण्‍य मिलेगा। लोगों ने दान देने में कोई कसर नहीं रखी और प्रखर जी महाराज और उनके चेलों ने बटोरने में।

आयोजन शुरू हो गया। हम चूंकि पढ़े लिखे प्रबुद्ध लोगों के परिवार से थे। इसलिए आयोजन से पर्याप्‍त दूरी बनाए हुए थे। फिर भी कौतुहलवश एक बार जाकर देख आए थे कि कैसा दिख रहा आयोजन स्‍थल। अभी आयोजन को शुरू हुए पांच-सात दिन ही हुए थे कि मेरा दोस्‍त प्रभु आया बोला प्रखर जी महाराज के यहां मालिश कराई क्‍या? वह हमेशा ही मुझे हैरान करता रहा है। इस बार तो अति हो गई। मैंने पूछा प्रखरजी महाराज ने यज्ञ के साथ मसाज पार्लर भी खोला है। वो बोला नहीं प्रखर जी महाराज के साथ एक विदेशी शिष्‍य है। उसने शक्तिपात की कला सीखी है। उससे शक्तिपात के बारे में बात करना। तो वह मालिश कर देगा। मेरे लिए यह नई जानकारी थी। मुझे असमंजस में देखकर प्रभु बोला चल मेरे साथ मालिश करा के आते हैं। मैं यंत्रवत् उसके साथ निकल पड़ा। शाम का समय था। यज्ञ की आहूतियां अपने अंतिम चरण में थी। पूरा वातावरण संहिता के श्‍लोकों से गुंजायमान हो रहा था। प्रखरजी महाराज स्‍थानीय जनप्रतिनिधियों को समझा रहे थे कि वे लोग दस करोड़ रुपए एकत्रित करके उन्‍हें दें तो वे बीकानेर में एक वैदिक स्‍कूल स्‍थापित कर सकते हैं। जिसमें सुरम्‍य वातावरण में पढ़ाई संभव हो सकेगी। बड़े-बड़े लोग बैठे थे इसलिए बीच में बोलना उचित नहीं लगा लेकिन मन में आया कि सुरम्‍य वातावरण की इतनी बड़ी कीमत की क्‍या जरूरत है। हम आगे बढ़ गए। कुटिया के पास ही विदेशी शिष्‍य कुछ लोगों को शक्तिपात की जानकारी दे रहे थे लेकिन बीकानेर के मारवाड़ी लोगों को बात पल्‍ले नहीं पड़ रही थी। प्रभु और मैं भी झुण्‍ड में जाकर बैठ गए। कुछ देर में भीड़ कम हुई तो प्रभु ने भगवाधारी विदेशी शिष्‍य को अंग्रेजी में बताया कि मैं दर्शन का विद्यार्थी हूं और शक्तिपात के बारे में जानना चाहता हूं। कुछ देर तक बोझिल ज्ञान से सराबोर करने के बाद जब मैं झपकी लेने की स्‍टेज में आ चुका था तो अचानक उन विदेशी भगवाधारी साधू महाराज ने मेरा सिर सामने से पकड़ा और अपने घुटनों की ओर झुका दिया। वे व्रजासन में बैठे थे। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता उन्‍होंने सिर से लेकर मेरी पीठ के आखिरी हिस्‍से तक तेजी से अपने हाथ चलाए(पीटा नहीं :))। इससे मेरी आंखें लाल हो गई। आस-पास बैठे लोगों को लगा कि मुझमें शक्तिपात हो गया है। सच कहूं तो मुझे भी एक बार लगा कि शक्ति बढ़ गई है। मेरा बॉस्‍केटबॉल में स्‍ट्रेचिंग का अनुभव बताता है कि अच्‍छी तरह से स्‍ट्रेच और मसाज हो तो पूरा शरीर हल्‍का हो जाता है। बस वही फीलिंग उस समय हुई। सिर ऊंचा उठाया तो महाराज ने पूछा क्‍यों कुछ महसूस हुआ। मैंने नहीं में सिर हिला दिया। महाराज नाराज हो गए और उठकर चले गए।

बाद में मैं काफी देर तक मेले में घूमता रहा। प्रभु ने महाराज के यहां से छूटते ही पूछा कैसी लगी मालिश। मैंने कहा कि मैं सोच रहा हूं कि दोबारा कैसे कराई जाए। :)

साक्षात प्रखरजी महाराज से एनकाउंटर अगली पोस्‍ट में।

शनिवार, 6 जून 2009

आज ही सांस ली है

पिछले कई दिन से जैसे मशीन ही बन गया था। सुबह आठ बजे दिन शुरू होता और रात को तीन बजे खत्‍म होता। अगले दिन सुबह आठ बजे फिर दिन शुरू हो जाता। पर मजा आ गया।

अतिव्‍यस्‍तता के कारणों में से एक प्रमुख कारण था वास्‍तु की कक्षाएं। समर स्‍कूल में मुझे छह दिन तक वास्‍तु संबंधी कक्षाएं लेने का मौका मिला। अभी से पहले कभी पढ़ाया नहीं और पढ़ा भी ढंग से नहीं। कक्षाएं शुरू होने से पहले ही मुझे बता दिया गया कि मेरी अनौपचारिक कक्षा में एक ऐसे सज्‍जन ने भी पंजीकरण कराया है जो एक स्‍थानीय अखबार में वास्‍तु पर नियमित कॉलम लिखते हैं। सच पूछिए तो मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। बाकी प्रतिभागी भी धुरंधर थे। कक्षा शुरू होने से पहले अठारह दिन तक लगातार पढ़ता रहा। साथ ही मनन भी करता रहा कि कहां से शुरू किया जाए और कहां तक ले जाया जाए। लेकिन अब तक पढ़ा सबकुछ रिकॉल किया। सारे नोट्स दोबारा संभाले। आखिर वह दिन आ गया।

मैं समय से पहले कक्षा में पहुंचा। लेकिन कक्षा खाली मिली तो इधर-उधर घूमने लगा। थोड़ी देर बार कॉर्डिनेटर को जाकर कहा तो उसने बताया कि सभी प्रतिभागी आ चुके हैं। कक्षा के बाहर ही खड़े होंगे। मैं वापस कक्षा की तरफ दौड़ा तो वहां कुछ वरिष्‍ठ पुरुष और महिलाएं खड़े थे। मैं उन्‍हें नजरअंदाज कर कक्षा में घुस गया और बोर्ड साफ करने लगा। मैं जिस बात को अवोईड करना चाह रहा था वही हुई। सबसे पहले स्‍तंभकार कक्षा में आए। और आते ही मेरा इंटरव्‍यू लेने लगे। पूछा क्‍या आता है आपको वास्‍तु के बारे में। आमतौर पर मैं जवाब देता हूं कि कुछ खास नहीं बस सीख रहा हूं। लेकिन अपनी कक्षा में यह बात कहना और वह भी पहले प्रतिभागी को नुकसानप्रद हो सकता था। सो उनकी बात मैं हंसकर टाल गया और समर स्‍कूल और दूसरे विषयों पर बात करने लगा। थोड़ी देर में उन्‍होंने पूछा कि आपको कितने साल हुए हैं अध्‍ययन करते हुए। मैंने गर्व से बताया कि ग्‍यारह साल हुए हैं। तो वे बोले 'बेटा' मैं 1990 से इस व्‍यवसाय में हूं। मेरी पीठ पर पसीना आ गया। वैसे उस दिन गर्मी भी अधिक थी। :)

खैर एक एक कर सभी प्रतिभागी अंदर आते गए और मैं किसी तरह अपना कांफिडेंस संभाले बैठा रहा। सबसे अच्‍छी बात यह रही कि एक हंसमुख बच्‍ची भी वास्‍तु की कक्षा में थी। मैंने उसी से शुरूआत की। मैंने उससे पूछा क्‍या होता है वास्‍तु। वह मुस्‍कुराई और जो भी उसके मन में आया बोलती गई। मेरा काम आसान हो गया। उसकी गलतियों को सुधारते हुए मेरी गाड़ी चलने लगी। पहले दिन आसानी से डेढ़ घण्‍टे तक मैं वास्‍तु के मूल सिद्धांतों के बारे में बताता रहा और उसी दिन मैंने सभी प्रतिभागियों को वास्‍तु की एक पुस्‍तक भवन भास्‍कर जो गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित है लाने के लिए कह दिया। यह मेरी पसंदीदा किताब है। फेंग शुई से अछूती और प्राचीन सिद्धांतों से परिपूर्ण। कहीं कोई शंका की गुंजाइश नहीं।

कक्षा खत्‍म होते ही घर आया और किताब को एक बार फिर पूरी पढ़ गया। अब मैं फुल चार्ज था। अगले दिन उन्‍हीं स्‍तंभकार ने दो-तीन बार मुझे टोका लेकिन मैं अपनी रौ में फ्रायड, डेल कारनेगी, स्‍टीफन आर कोवे, एलन पीज और विवेकानन्‍द तक के उद्धरण देते हुए अपनी बात पूरी करता गया और प्रतिभागियों के समक्ष तस्‍वीर स्‍पष्‍ट होती गई। हर किसी के दिमाग में कहीं न कहीं कोई न कोई भ्रांति पहले से थी। अधिकांश ने पहले से वास्‍तु का कुछ न कुछ अध्‍ययन किया हुआ था। अच्‍छी बात यह थी कि किसी ने भवन भास्‍कर नहीं पढ़ी थी। हर रोज एक विषय लेकर उसे पूरा करता और कक्षा के अंत तक किसी ने किसी मॉडल का विश्‍लेषण करता। पांचवे दिन प्रतिभागी परफेक्‍ट मॉडल बनाकर लाए। उन मॉडल्‍स में गलतियां बताई और आखिरी दिन तो दो मॉडल बिल्‍कुल परफेक्‍ट बन गए। हर दिन मेरे और मेरे प्रतिभागियों के चेहरे पर चमक बढ़ती गई। बस एक गड़बड़ हुई कि आखिरी दिन स्‍तंभकार महोदय नहीं आए। कक्षा खत्‍म होने के बाद उनका फोन आया। बोले मैं किसी कारणवश आ नहीं पाया इसलिए माफी चाहता हूं। मैंने कहा कोई बात नहीं। उस समय मैं कॉर्डिनेटर के पास बैठा था।  उन्‍होंने कहा परीक्षा से डर से नहीं आए होंगे। मैंने कहा परीक्षा की तो कुछ बात ही नहीं थी। तो उन्‍होंने बताया कि हर कोर्स में आखिरी दिन परीक्षा का प्रावधान है। उसमें टॉप रहने वाले विद्यार्थी को पुरस्‍कृत किया जाएगा।

अब बात मेरी समझ में आई कि स्‍तंभकार महोदय को लगा कि मैं परीक्षा लूंगा और फेल कर दूंगा तो उनकी फजीहत होगी लेकिन हकीकत में मुझे परीक्षा के बारे में जानकारी ही नहीं थी। खैर मैंने एक टॉप विद्यार्थी का नाम बता दिया जिसे पुरस्‍कृत किया जाएगा।

इस तरह छह दिन का समय इतना अधिक व्‍यस्‍तता वाला रहा कि न तो ब्‍लॉग पढ़ पाया न लिख पाया। रात को दो बजे के बाद भी बैठता तो केवल केरल पुराण की कोई नई कथा पढ़ने या इक्‍का दुक्‍का दूसरे ब्‍लॉग देखने। इसी दौरान कुर्सी पर ही नींद आ जाती।

खैर आज पुरानी सारी मेल देखी। ज्‍योतिष दर्शन पर लेख डाला और यहां आपबीती सुनाने आ गया। अच्‍छा रहा ये सप्‍ताह...

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

इन्‍हें फेल कर दो

समीरजी की किसी ने देखा तो नहीं पढ़ा तो मुझे भी अपना एक किस्‍सा याद आ गया। तब मैं सातवीं कक्षा में था। दिनभर खेलना कूदना और धमाचौकड़ी करना। इसके लिए हम पर्याप्‍त दोस्‍त थे। एक मिनट भी शांति नहीं मिलती थी। स्‍कूल से बारह बजे लौटने के बाद रात दस बजे एक एक मिनट का कार्यक्रम पूर्वतय रहता। सो पढ़ने का समय ही नहीं मिल पाता था। अनुज आनन्‍द छठी क्‍लास में था। दोनों की धमाचौकड़ी से परेशान मम्‍मी ऑफिस से लौटने के बाद जमकर गालियां निकालती। गला साफ करने के बाद हाथ भी साफ करतीं। सो मानसिक और शारीरिक ताकत की कीमत और उसे जल्‍द से जल्‍द अतिविकसित करने का ख्‍याल वहीं से आया।

खैर हमारी धींगामुश्ति को देखते हुए ऐन परीक्षा के दिनों में मम्‍मी किन्‍हीं कारणों से पढ़ा नहीं पाई। परीक्षा के बाद उन्‍हें ध्‍यान आया कि बच्‍चों की परीक्षा हो चुकी है। सो उन्‍होंने अधिकृत घोषणा कर दी कि इस साल आनन्‍द और नरेन्‍द्र (मेरा घर का नाम) दोनों फेल होंगे। मिठाईयां बंट गई और शाबासी के न्‍यौते आने लगे। अब हम क्‍या सफाई दें। इम्तिहान में मिले पर्चे लेकर हम लगभग सभी गुणीजनों की सेवा में उपस्‍िथत हुए और पूरा पर्चा हल करके बताया तो हमारी तारीफ भी हुई और सलाह भी मिली कि पहले ही मेहनत करके पाठ याद करते तो परीक्षा में भी ऐसा ही पर्चा हल कर आते। हम कटकर रह जाते। परीक्षा परिणामा आने तक तो खुद हम दोनों को ही यकीन हो गया कि इस बार तो फेल हो गए। किताबें भी नई नहीं दिलाई गई। पिछले साल की किताबें ही जो काम आनी थी।

परिणाम आ गया। घर में सभी लोग इतने आशवस्‍त थे कि कोई भी स्‍कूल नहीं गया। दोस्‍तों को पता था कि सिद्धार्थ हर साल की तरह इस साल भी गिरता पड़ता पास हो जाएगा तो किसी ने रिजल्‍ट शीट में मेरा नाम ढूंढने की भी कोशिश नहीं की। धमाका आनन्‍द ने कर दिया। वह क्‍लास टॉप कर गया। सो उसके मित्र घर आ गए और बता दिया। मम्‍मी ऑफिस गई थी। हम दोनों ही घर में थे। आनन्‍द ने सुना तो मेरा पूछा। दोस्‍तों ने कहा पता नहीं तेरा तो देखा ही नहीं। मैं सन्‍न। किसी तरह तैयार होकर स्‍कूल पहुंचा तो मास्‍टरजी मिल गए। पूछा क्‍या हुआ पास या फेल। मैंने कहा पता नहीं तो उनकी पेशानी पर भी बल पड़ गया। खैर बाबूजी से पूछा तो पता चला कि पिछले सालों की तरह ही पास हो गया था।

अब शाम तो सभी लोग घर पहुंचे तो हम पहले की तरह नाच गा रहे थे। पिछले कुछ दिन से  यह क्रम रुक सा गया था। अब फिर से शुरू हुआ तो मम्‍मी ने कहा कि इन लड़कों को बिल्‍कुल शर्म नहीं है। हमने बताया कि पास हो गए हैं तो मम्‍मी बिगड़ गई। पहले तो विश्‍वास ही नहीं किया और जब विश्‍वास दिलाया तो और भी बड़ा धमाका हुआ। वे अगले दिन सुबह हमारी स्‍कूल के प्रिंसीपल शास्‍त्री जी (उन्‍होंने संस्‍कृत में शास्‍त्री की उपाधि प्राप्‍त की थी सो उनका नाम ही शास्‍त्रीजी पड़ गया था, एक बात और वे औरतों से बात नहीं करते थे, महिला सामने आने पर गर्दन नीचे किए रखते और धीरे धीरे बोलते थे) के पास पहुंच गई। उन्‍होंने उनकी मेज पर धौल मारकर बोलीं इन बच्‍चों को आपने कैसे पास कर दिया। इन दोनों ने पूरे साल पढ़ाई नहीं की। अगर इसी तरह आप पास करते रहे तो इनकी नींव कमजोर रह जाएगी। कैसे भी हो आप इन दोनों को फेल कर दो। अब हैरान होने के बारी शास्‍त्रीजी की थी। उन्‍होंने कहा ठीक है कर दूंगा और किसी तरह मम्‍मी को टाला और शाम तक आ गए मेरे पड़नानाजी के पास जो उनके गुरू रहे थे। मेरे पड़नाना बहुत हंसे। बोले विश्‍वास तो मुझे भी नहीं हो रहा है। उन्‍होंने शास्‍त्रीजी को समझाकर भेजा। अगले दिन पूरी स्‍कूल और सभी रिश्‍तेदारों को यह बात मालूम हो चुकी थी। यह कई दिन तक हंसी मजाक का केन्‍द्र बनी रही। और हमारी हालत... वह तो किसी ने भी नहीं देखी।