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गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009

लड़का ही क्‍यों...

पिछले तीन दिन से बस सोच ही रहा हूं। आमतौर पर किसी एक विषय को लेकर सोचने का क्रम कभी इतना लम्‍बा नहीं चल पाता है लेकिन पिछले तीन दिन में हर काम करते-करते, उठते-बैठते, आते-जाते, सोते-जागते यही सोच रहा हूं। बचपन में मां सरस्‍वती की एक तस्‍वीर थी। उसमें उनके हाथ में वीणा और सादे वस्‍त्र देखा करता था। चेहरे पर ऐसी सौम्‍यता कि लगता काश यही मेरी मां होती। बाद में पता चला कि ये तो वास्‍तव में सबकी मां है। लता मंगेशकर को बहुत बाद में देखा। सुना पहले। कुछ खास अनुभव नहीं हुआ लेकिन जब देखा तो देखता रह गया। वही सादगी और वीणा के तारों की झनकार जैसी आवाज। मानो सरस्‍वती उनके जरिए अपनी आभा दिखा रही हो। कई कार्यक्रमों में देखा। एक बार तो टीवी पर लाइव शो देखा। उसमें अमिताभ बच्‍चन उनके साथ गा रहे थे। कुछ लोग स्‍टेज पर आने पर उनके पैर छू रहे थे। कुछ नहीं भी छू रहे थे, तब मैंने सोचा कि जो लोग लता जी के पैर नहीं छू रहे हैं वे एक अच्‍छा मौका खो रहे हैं। एक बार यसुदास ने कहा कि अब लताजी की आवाज में कंपन आ गया है उन्‍हें गाना बंद कर देना चाहिए। तब अच्‍छा खासा बवाल खड़ा हो गया था। तब खुद लताजी ने कहा कि यसुदास सही कह रहे हैं। उसके बाद ही मैंने यसुदास के कैसेट्स लाकर सुने। लड़कपन से एक इच्‍छा यह भी है कि एक बार मुम्‍बई जाउं और लताजी के पैर छूकर आउं। लताजी को देखकर ही मुझे शायद एक बेटी की भी इच्‍छा है।

पिछले दिनों वे अस्‍सी साल की हो गई। वही सौम्‍य अंदाज और वही वीणा के तारों की आवाज। उनके अस्‍सीवें जन्‍मदिन पर उनके एक पुराने इंटव्‍यू को छापा गया था। उसी ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। उसमें उन्‍होंने कहा कि अगले जन्‍म में वे लड़की नहीं बल्कि एक साधारण परिवार में लड़का बनकर जन्‍म लेना चाहती हैं। इस बात ने मुझे झकझोर दिया। मैं सोच रहा था कि वैसी जिंदगी बार-बार कौन नहीं चाहेगा लेकिन इस जन्‍म में भी लताजी को शांति नहीं मिली तो कैसे जन्‍म में मिलेगी। क्‍या एक लड़का होना अच्‍छी जिंदगी की गारंटी है। क्‍या लड़कियां वास्‍तव में खाली दु:ख पाने के लिए ही पैदा होती हैं। हो सकता है कि मंगेशकर बहनों का बचपन इतना अच्‍छा नहीं रहा। हर किसी ने अपने तरीके से संघर्ष किया। लताजी के अलावा आशा भोंसले के जीवन में भी उतार चढ़ाव रहे और दोनों मंगेशकर बहनों की वृहद् छाया में उषाजी को भी कुछ तकलीफ हुई होगी। भले ही निरी ईर्ष्‍या के कारण ही हुई हो। लेकिन किसे समस्‍या नहीं है।

एक ज्‍योतिषी या एक पत्रकार के तौर पर देखता हूं तो समस्‍याएं हर जगह दिखाई देती हैं। क्‍या पलायन से शांति संभव है। क्‍या संघर्ष से भागने पर इसका अंत हो जाता है। क्‍या रणछोड़ बन जाने से युद्ध की स्थिति खत्‍म हो जाती है। लड़ना तो पड़ेगा ही संघर्ष की लकीरें नहीं होगी तो कैसे लिखेंगे जीवनी।

फिर दूसरा पक्ष भी मैं सोचना चाहता हूं। मैंने पढ़कर और देखकर अनुभव किया है कि इंसान दो चीजों के लिए जिंदा रहता है। स्‍पर्श और महत्‍व। वास्‍तव में इस जिंदगी में लताजी को इनमें से एक ही मिला होगा। असामान्‍य बचपन ने स्‍पर्श का अभाव दिया, असामान्‍य जवानी ने भी स्‍पर्श को दूर रखा और अब वृद्धावस्‍था भी स्‍पर्श से अछूती लगती है। ऐसे में जीवन अनुभव के दो मूल तत्‍वों में से एक का एकांतिक अभाव ऐसी सोच को पैदा कर रहा होगा। मैं भी चाहता हूं कि लताजी को अपने अगले जीवन में दोनों सुख मिले और भरपूर मिले, लेकिन क्‍या उसके लिए लड़का होना जरूरी है।

मैं निजी तौर पर चाहता हूं कि हमारी अगली संतान कन्‍या हो। लता मंगेशकर जैसी हो। भले ही उसे लताजी जैसी प्रसिद्धि न मिले लेकिन सादगी और वीणा के तारों सी आवाज हो। उसे हर संभव सुविधाएं मुहैया कराउं, उसके लिए अच्‍छा वर ढूंढकर लाउं और वह मनमर्जी का अच्‍छा जीवन जिए। मेरे जैसे बहुत से लोग होंगे जो ऐसी कामना रखते होंगे। लताजी से निवेदन है कि वे ईश्‍वर से प्रार्थना करें कि ऐसे ही किसी घर में वे अगले जन्‍म में पैदा करे। फिर से कन्‍या बनाकर न कि लड़का। क्‍योंकि मां सरस्‍वती के आशीर्वाद की अभी इस धरती को बहुत जरूरत है। इस जन्‍म में भी मैं चाहता हूं कि लताजी कम से कम बीस साल तो और जिएं। उनके सौ साल पूरे होने तक मैं इंतजार कर लूंगा। उसके बाद अगली संतान करने को तैयार हूं। फिर मेरे घर आए कन्‍या के रूप में मां सरस्‍वती का आशीर्वाद बनकर...

शुक्रवार, 1 मई 2009

ये तो टू- मच हो गया। हयं ?

आज अमितजी की नजर से दुनिया देखी तो हिट लिस्‍ट बना ही डालने की तैयारी करने लगा। बाद में देखा तो 99 टास्‍क के अलावा कुछ और भी दिमाग में आया तो जोड़ दिया। कुछ मेरे से संबद्ध नहीं था सो छोड़ दिया। पलटकर नजर डाली तो लगा कि ये तो टू-मच हो गया।

  1. अपना ब्लॉग आरंभ किया- कौनसा वाला, खुद के नाम वाला या विषय विशेष का। अब तक बारह ब्‍लॉग का सदस्‍य बन चुका हूं। कभी कभी सोचता हूं पता नहीं क्‍यों लिख मार रहा हूं।
  2. तारों की छांव में नींद ली- जमकर ली। अब तक तो बीकानेर में संभव है कि तारों की छांव में सोया जा सके। कुछ सालों बाद घर में कैटेलिटिक कन्‍वर्टर लगा लूंगा और एयरटाइट कमरे में सोउंगा, प्रदूषण से बचने के लिए।
  3. संगीत बैन्ड में कोई वाद्य यंत्र बजाया- एक बार बजाया, फिर उपस्थित श्रोतागणों ने मुझे बजाया, उसके बाद भूलकर भी कुछ नहीं बजाया।
  4. अमेरिका के हवाई द्वीपों की सैर करी- उसकी खोज हो चुकी है क्‍या। यानि अब कुछ भी नहीं बचा है एक्‍सप्‍लोरेशन के‍ लिए। यह ख्‍याल ही मुझे डिप्रेस कर देता है।
  5. उल्का वर्षा देखी - हां देखी, और हर बार कुछ कुछ होता है स्‍टाइल में विश मांगी। कुछ पूरी भी हो गई। जैसे कम से कम आज कोई गाली न दे।
  6. औकात से अधिक दान दिया - किसकी औकात, मेरी या दान लेने वाले की।
  7. डिज़नीलैन्ड की सैर करी - एम्‍युजमेंट पार्क के नाम पर एक बार अप्‍पूघर गया था दिल्‍ली में, उसकी यादें आज तक ताजा है। माइ फेयर लेडी से उतरने के बाद जी भरकर कै की।
  8. पर्वत पर चढ़ाई करी - मेरी पत्‍नी ने की है, कई बार वे रौ में आ जाती हैं तो उनके साथ ही कर लेता हूं। दो चार घण्‍टे लगते हैं। चाय की चाय और पहाड़ की चढ़ाई मुफ्त।
  9. प्रेयिंग मैन्टिस (praying mantis) कीड़े को हाथ में पकड़ा - यह टिड्डे, जोंक, हैलीकॉप्‍टर, सांप, केंचुए, कॉकरोच से अलग होता है क्‍या।
  10. सोलो गाना गाया - हें हें हें हें।
  11. बंजी जंप करी - दिल ने की है शरीर की बाकी है।
  12. पेरिस गए - इसे भी खोज लिया गया। दुख की बात है।
  13. समुद्र में बिजली का तूफ़ान देखा - रेत के समुद्र में घटोलिए आते हैं। बिजली बादलों में होती है धोरों में नहीं। सो घटोलिए देखे हैं। बहुत शानदार नजारा होता है।
  14. कोई कला शुरुआत से अपने आप सीखी - हां, सीखी, ज्‍योतिष, लोग इसे मूर्ख बनाने की कला कहते हैं।
  15. किसी बच्चे को गोद (adopt) लिया - एक कुत्‍ते का बच्‍चा लिया था, दुख के साथ कहता हूं उसे ढंग से पाल नहीं पाया। अब वो किसी और के पास है और मुझे पहचानने से इनकार करता है।
  16. कुतुब मीनार को देखा- देखा, वहां लिखे लोगों के प्रेम पत्रों को देखा, वैसे इस इमारत से इतना प्रभावित हुआ कि कुछ लम्‍बे लोगों को कुतुबमीनार बोल दिया। आज तक उनके संबंध वापस सुधरे नहीं हैं।
  17. अपने लिए सब्ज़ी उगाई - मैंने तो नहीं मेरी पत्‍नी ने  उगाए, बैंगन, कल ही उसका साग खाया था। अब किचन गार्डन में भिंडी का इंतजार है।
  18. फ्रांस में मोनालिसा देखी - हां, क्‍या वो गर्भवती थी ?
  19. रात के सफ़र में ट्रेन में नींद ली - हां, एक बार, जब सामान लेडीज कपार्टमेंट में था और मैं थर्डक्‍लास में था, तब।
  20. तकिए द्वारा लड़ाई की- हां, करता रहा हूं,... तकिया माने?
  21. सड़क पर किसी अंजान व्यक्ति से लिफ़्ट ली - मांगी पर मिली नहीं।
  22. स्वस्थ होते हुए भी ऑफिस से बीमारी के लिए छुट्टी ली - अभी अभी छुट्टियों से लौटा हूं। बॉस बहुत नाराज हैं। सहकर्मी ईर्ष्‍या कर रहे हैं। :)
  23. बर्फ़ का किला बनाया  - बर्फ ? रेत का किला बनाया। हवा के झोंके से ढह गया।
  24. मेमने को गोद में उठाया  -  ..... वह तो ..
  25. बिना किसी वस्त्र के नग्न ही पानी में उतरे (तरण ताल, नदी, तालाब, समुद्र अथवा बाथ टब इत्यादि में) ही ही ही ही, इस सवाल में बाथरूम नहीं जुड़ सकता क्‍या।
  26. मैराथन रेस में दौड़ लगाई - हां, पीएमटी पांच बार दी, हर बार फेल होता रहा, मैराथन हारने का सा अनुभव रहा।
  27. वेनिस में गोन्डोला (एक तरह की नाव) में सवारी करी - ये इतनी जगहें ढूंढ कैसे ली गई, अभी तो मैंने अपनी यात्रा शुरू भी नहीं की है। कहां कहां जाउंगा।
  28. पूर्ण ग्रहण देखा - परिवार के विरोध के बावजूद देखा, हमारे यहां माना जाता है कि ग्रहण देखने से बच्‍चे पगला जाते हैं, अब तो सब लोग मानने भी लगे हैं कि मेरे ऊपर ग्रहण का कुछ असर है।
  29. सूर्योदय अथवा सूर्यास्त देखा- सालों पहले देखा था, छत पर सो रहा था,  सूर्योदय देखकर सोचा कि जल्‍दी दिन उग आया अभी कुछ नींद और खींच सकता था। और सूर्यास्‍त भी देखा तो सोचा कि पूरी ताकत से काम किया लेकिन दिन छोटा रह गया।
  30. हाफ कोर्ट से काउंट किया बॉस्‍केटबॉल में –  हां किया, मैं खुद अब तक सनाके में हूं कि बॉल बॉस्‍केट में पहुंची कैसे।
  31. समुद्र पर्यटन (cruise) पर गए - हां, ऊंट पर बैठकर।
  32. नियाग्रा फॉल्स स्वयं देखा - कम्‍प्यूटर पर ही देखा। ऑनलाइन। स्‍वयं देखा, ...
  33. पूर्वजों की जन्मभूमि देखने गए - अब तक वहीं जमा हूं।
  34. किसी कबीले के रहन सहन को नज़दीक से देखा - कबीलाई संस्‍कृति अब भी है बस अंदाज बदल गए हैं। कबीलों का शहरीकरण कह सकते हैं। एक मुखिया और बाकी प्रजा। संयुक्‍त परिवार भी एक कबीला ही होता है।
  35. अपने आप एक नई भाषा स्वयं सीखी- हां, सितारों की भाषा सीखी, पहले तो उन्‍हें सुन भी पाता था, अब केवल संकेत बचे हैं। ज्ञान बढ़ेगा तो और भी मूढ़ हो जाउंगा।
  36. इतना धन अर्जित किया कि पूर्णतया संतुष्ट हुए - कमाने से पहले ही संतुष्‍ट था, अब तो असंतुष्‍टता बढ़ रही है।
  37. पिसा की झुकती मीनार (Leaning Tower) देखी - गिरती देखी, कई पीसा की मीनारें, तब सोचा, तुलसी नर का क्‍या बड़ा समय बड़ा बलवान।
  38. रॉक क्लाइम्बिंग करी - बस देखता रहा, की नहीं, ओशो याद आ गए, वे कहते थे, साक्षी भाव से देखो, काया तो कष्‍ट देने से साक्षी भाव अपना लेना अधिक सहज है।
  39. कैरीओकी (karaoke) गाया - हें, हें, हें हें, कितनी बार करना है पता नहीं,
  40. किसी अंजान को रेस्तरां में खाना खिलाया - हां, टीना के साथ, टीना यानि देयर इज नो अल्‍टरनेटिव।
  41. अफ़्रीका गए - लोगों को एस्‍प्‍लोरेशन के अलावा और कोई काम नहीं है क्‍या।
  42. चांदनी रात में धोरों की सैर करी - हां, और गाना भी सुना, मोरिया आछो बोल्‍यो रे धरती रात मां। छनन, छन चूडि़यां, छमक गई रे बालमा..
  43. एम्बुलेन्स में ले जाया गया - हां, अपेंडिक्‍स का ऑपरेशन था, उस समय सबकी जान सूखी हुई थी और मैं आराम से लेटा हुआ सबको देख रहा था। इमरजेंसी ऑपरेशन हुआ।
  44. अपनी तस्वीर बनवाई (फोटो नहीं) - कई दिन से एक आर्टिस्‍ट को कह रहा हूं, लेकिन न मुझे समय मिल रहा है न उसे।
  45. बरसात में चुंबन लिया/दिया - हें हें रेगिस्‍तान में बारिश ही कम होती है, प्रायिकता के सिद्धांत के अनुसार बरसात और चुंबन को मिलाया जाए तो संभावनाएं बहुत क्षीण हो जाती है, सो हमने तो बारिश का इंतजार नहीं किया।
  46. मिट्टी में खेले- और किसमें खेलते।
  47. ड्राईव-इन सिनेमा देखा - यह क्‍या होता है।
  48. किसी फिल्म में नज़र आए - कई बार कोशिश की, लेकिन हीरो लोग ही डर जाते हैं, मेरी ओर इशारा करके निकलवा देते हैं यूनिट से।
  49. चीन की बड़ी दीवार देखी - आप महंगाई और सुविधाओं के बीच की बात कर रहे हैं।
  50. अपना व्यवसाय आरंभ किया- हां दो महीने किया और पता चला कि गलत धंधे में हैं, सो बंद कर दिया।
  51. मार्शल आर्ट की क्लास में भाग लिया - खुदा कसम, जब जब ठुकाई हुई तब तब प्रण किया कि मार्शल आर्ट सीखेंगे, लेकिन यह तमन्‍ना आज  तक तो पूरी नहीं हुई है।
  52. रूस गए - जो ऊपर की तरफ है। नहीं।
  53. लंगर/भंडारे में लोगों को खाना परोसा - हां, आनन्‍द आया।
  54. ब्वॉय स्कॉऊट पॉपकार्न अथवा गर्ल स्कॉऊट कुकीज़ बेची - इससे अधिक भी कई काम कर चुका हूं।
  55. समुद्र में व्हेल देखने गए - नहीं लेकिन भूत देखने के लिए गया हूं। ऐसी जगहों पर रातें बिताई है जहां लोग दिन में भी नहीं जाना चाहते।
  56. खामखा बिना वजह किसी ने फूल दिए - हां,
  57. रक्त दान किया - किया लेकिन काम नहीं आया।
  58. नाज़ी कॉन्सनट्रेशन कैम्प देखा - मेरे घर में था, अब बंद हो गया है। आपको भी दिखाता कुछ साल पहले।
  59. खुद का दिया बैंक चैक बाऊंस हुआ - मेरी शक्‍ल ऐसी है कि लोग चैक ही स्‍वीकार नहीं करते।
  60. बचपन के किसी मनपसंद खिलौने को बचा के रखा- नहीं, पहले ही उसका बंटवारा हो गया था। एक कैलकुलेटर है। पर वह बचपन का नहीं टीन एज का है।
  61. राज घाट पर गांधी समाधि देखी - हां देखी, तीन बार, घण्‍टों वहीं बैठा रहा। क्‍योंकि बाहर गर्मी ज्‍यादा थी और वहां सुकून मिल रहा था।
  62. कैवियार (मछली के अंडों का अचार) खाया - शाकाहारी होने का यही नुकसान है कि जयपुर जाकर आमलेट खाना पड़ता है।
  63. रजाई का कवर सिला - हां और भी बहुत कुछ ऐसा किया है। मिट्टी से बर्तन भी मांझे हैं।
  64. चांदनी चौक गए- हां, :) हां
  65. घने जंगल में सैर की- जंगल ? कहां है।
  66. नौकरी से निकाले गए - नहीं, अब तक तो मैं खुद ही छोड़ता रहा हूं। मैं मालिक को मौका ही नहीं देता। :)
  67. हड्डी टूटी - कई बार। मांस भी फटा है और टांके भी आए हैं।
  68. तेज़ रफ़्तार मोटरसाइकल की सवारी करी- एक बार 120 की रफ्तार से अपनी पल्‍सर चला चुका हूं। अब तक की तो यह लिमिट है। अगली बार सर्विसिंग के बाद 130 पर चलाने की कोशिश करूंगा।
  69. अपनी किताब छपवाई - इतना लिख लेता तो कलेक्‍टर नहीं बन जाता। पूरे छात्र जीवन में नोट्स ही नहीं बनाए। अब ब्‍लॉगिंग ने लिखना सिखाया है।
  70. नई नवेली गाड़ी खरीदी - नहीं हमेशा उपहार में ही मिली है। पर मिली नई नवेली।
  71. अखबार में फोटो छपी - कई बार।
  72. नव वर्ष की पूर्व संध्या की मध्यरात्रि किसी अंजान का चुंबन लिया - क्‍यों बताउं।
  73. राष्ट्रपति भवन की सैर करी - हां,
  74. किसी जानवर का शिकार कर खाया - शाकाहारी हूं भाई।
  75. चिकन पॉक्स झेला- हां,
  76. किसी की जान बचाई - ऊपरवाला ही बचाता है। लेकिन मुझे वहम है कि कुछ लोगों की बचा चुका हूं।
  77. जज अथवा जूरी बन निर्णय सुनाया (किसी प्रतियोगिता में या न्यायालय में)- अब तक तो प्रतियोगी ही बना हूं।
  78. किसी प्रसिद्ध व्यक्ति से मुलाकात करी - कई लोगों से मिला हूं। वे सामान्‍य हाड मांस के पुतले लगते हैं। उन्‍हें देखकर भाग्‍य पर अधिक भरोसा होने लगता है।
  79. बुक क्लब की सदस्यता ली - कई जगह, अभी भी सदस्‍य हूं।
  80. किसी अज़ीज़ को खोया - हां पिंकू को खोया, मेरा कुत्‍ता था, मैं उससे प्‍यार करता हूं।
  81. शिशु का पिता बना - यह ऐसा अनुभव है जिसे बयां नहीं किया जा सकता।
  82. किसी कानूनी मुकदमे में शरीक हुए/रहे - एक मुकदमे का हिस्‍सा तो पिछले सत्‍ताईस साल से हूं
  83. सेल फोन के मालिक हैं/रहे - हां, कॉल कीजिएगा। 09413156400
  84. मधुमक्खी ने डंक मारा- हां, कई बार, लोहे की चाबी से रगड़ा तो दुरुस्‍त हुआ।

सोमवार, 17 नवंबर 2008

बीकानेर की पाटा संस्‍कृति


भारत के बीकानेर शहर और इटली के उदीने शहर में एक समानता है और एक चीज दोनों शहर आपस में बांटते हैं।

जो चीज समान है वह है पाटा... इसके बारे में अभी  बताता हूं और क्‍या बांटते हैं वह लेख के आखिर में बताउंगा।

जो लोग बीकानेर के हैं या कुछ समय बीकानेर में  रह चुके हैं उन्‍हें अजीब लगेगा कि इस विषय पर मैं कैसे लिख रहा हूं लेकिन मुझे  पाटे पर लिखने का ख्‍याल कल रात को ही आया। हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स के स्‍पेशल कोरस्‍पोंडेंट  श्रीनंद झा, जो किसी पॉलिटिकल कवरेज के लिए बीकानेर आए थे, मुझसे फोन पर पूछा कि ये पाटा क्‍या  होता है। मैंने जवाब में सवाल ही पूछा कि आपको इस बारे में किसने बता दिया?

उन्‍होंने  कहा बता दिया किसी ने। क्‍या आप मुझे दिखाकर लाएंगे। मैंने कहा काम से फारिग होते  ही आपको ले चलूंगा। उन्‍होंने समय पूछा तो मैंने बताया रात दस बजे ठीक रहेगा। वे  अगले दिन की उम्‍मीद कर रहे थे और मेरे रात के दस बजे के प्रपोजल को सुनकर पशोपेश  में पड़ गए। फोन की दूसरी ओर तक कुछ देर की शांति के बाद उन्‍होंने कहा ठीक है, चलते हैं। मुझे काम निपटाने में कुछ अधिक समय लग गया। रात साढे़ दस के बाद ही मैं  उनकी आरटीडीसी की होटल तक पहुंच पाया। वे इंतजार कर रहे थे। उनका विचार था कि  फोटोग्राफर को भी साथ ले लेंगे तो काम हाथों-हाथ निपट जाएगा। मैंने कहा तीन लोग  चलेंगे तो कार लेनी पड़ेगी। पुराने शहर की तंग गलियों में कार मुश्किल से चल पाएगी, तो बाइक पर चलना ठीक रहेगा। फोटोग्राफर अगले दिन सुबह भी फोटो ले सकता है।

कुछ देर के डिस्‍कशन के बाद मेरी बात मान ली गई।  झा को लेकर मैं शहर के मुख्‍य मार्गों से होता हुआ पुराने शहर की ओर बढ़ रहा था तो  पहली बार मुझे शहर के बाहरी इलाके और तंग गलियों वाले पुराने शहर में अन्‍तर शिद्दत से महसूस हुआ।

अब पाटों की बात-

निकलने से पहले श्रीनन्‍दजी ने मुझसे थोड़ा ब्रीफ करने के लिए कहा। शुरुआती तौर पर मैंने जो बताया उसे झा ने कुछ इस तरह से समझा कि पाटा एक तरह का बड़ा दीवान होता है जो मोहल्‍ले के बीचों-बीच लगा होता है। इस पर कई लोग बैठते हैं। उनका सवाल था कि लोग करते क्‍या हैं पाटे पर? उनके लिए विषय नया था और मेरे लिए यह सवाल नया था। मैंने कहा सबकुछ। यानि हर तरह की गतिविधि पाटे से जुड़ी होती है। उन्‍होंने पूछा पाटे पर बैठते कौन लोग हैं। मैंने बताया हर तरह के पाटे पर अलग तरह के लोग नजर आएंगे। गुत्‍थी सुलझने के बजाय उलझती जा रही थी। झा को लगा चलकर देख लेना ठीक रहेगा वरना ये युवा पत्रकार उन्‍हें और उलझा देगा।

ऐसा दिखता है पाटा-


यह है आचार्यों के चौक का पाटा-

बीकानेर के तकरीबन हर मोहल्‍ले में पाटा है या कहूं कि पाटे हैं। पाटे पाटा का बहुवचन है। हर पाटे का अपना इतिहास है। मोहल्‍ले के बीचों-बीच शीशम की टनों लकड़ी से बना यह ऊँचा ‘दीवान’ सामाजिक कार्यों की धुरी बनता है।

खैर हम लोगों ने आचार्यों के चौक पहुंचकर पाटे पर बैठे लोगों से सीधे बातचीत शुरू कर दी। पहले मैंने मारवाड़ी में बोलते हुए बैठे लोगों को बताया कि ये झा सा’ब हैं और दिल्‍ली से हिस्‍दुस्‍तान टाइम्‍स अख़बार से आए हैं। अपने पाटे के बारे में जानना चाहते हैं। इसके बाद आधे घण्‍टे से अधिक लम्‍बे समय तक लोग बोल रहे थे। इसमें वर्ड बैंक के पूर्व निदेशक और वर्तमान राजस्‍थान सरकार के वित्‍तीय सलाकार विजय शंकर व्‍यास, विभिन्‍न शोधों के तेरह पेटेंट हासिल कर चुके हर नारायण आचार्य और उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों को अपने तख्‍त पर बैठा चुका पाटा मानो खुद बोल रहा था। कैसे हर सामाजिक कार्यों में पाटा लोगों को एक स्‍थान पर एकत्रित करता है, बुजुर्गों की शामें और रातें तक इस पर गुजरती हैं, युवाओं की बीवीओं को सौत लगने वाला पाटा कई सौ सालों की स्‍मृति संजोए आने वाली पीढ़ी को, बीती हुई पीढ़ी के साथ मौहल्‍ले के बीचों-बीच बैठकर देखता है। झा केवल हां-हां में सिर हिला रहे थे और उत्‍साहित बड़े-बूढ़े, अधेड़ और जवान लोग लगातार बोल रहे थे। कोई आधे घण्‍टे बाद मैंने यह कहकर झा को मुक्ति दिलाई कि इन्‍हें भट्टड़ों के चौक का पाटा भी देखना है। लोगों ने निकलते हुए कहा वहां तो आपको ज्‍योतिषियों की पूरी जमात मिल जाएगी। झा एक बारगी अचकचा गए। मुझसे पूछा तो मैंने बताया कि खुद ही देख लीजिए पूरी रात जगने वाले पाटे को।  

भट्टड़ों के चौक का पाटा

यह पाटा पूरी रात जगता है। दिन में बड़े-बूढ़े इस पर बैठते हैं और जैसे-जैसे रात ढ़लती है यहां ज्‍योतिषियों का जमावड़ा शुरू हो जाता है। रात नौ बजे से सुबह पाँच बजे तक एक ज्‍योतिषी जाता है तो दूसरा आता है। धुरी में रहते हैं प‍ंडित राजेन्‍द्र व्‍यास उर्फ ममू भईजी। कई बार वे आस-पास या कलकत्‍ता गए हुए होते हैं तो यह गहमा-गहमी कम होती है। लेकिन हमारा भाग्‍य प्रबल था। ममू वहीं मिल गए पाटे पर। अपने शिष्‍यों के साथ लैपटॉप पर किसी कुण्‍डली का विश्‍लेषण कर रहे थे। मैंने झा साहब का परिचय दिया तो उन्‍होंने गोत्र तक पूछ डाले। किसी समय मैं भी ममू के दरबार का हिस्‍सा रहा हूं। सो उनका स्‍वभाव जानता हूं। मैंने झा को ममू के हवाले कर किनारे हो गया। पाटा संस्‍कृति का दूसरा आयाम देखने के बाद झा बस नोट करते जा रहे थे। दो दिन पूर्व दिवंगत हुए आचार्यराज के बारे में पूरी जानकारी ली।

इसके बाद शुरू हुआ ज्‍योतिष का काम। बिना झा की कुण्‍डली देखे ममू ने प्रश्‍न कुण्‍डली बनाकर झा को उनके जीवन और परिवार के बारे में कई बातें बताई। जब झा को विश्‍वास हो गया तो उनसे जन्‍म समय और तारीख लेकर कुण्‍डली बनाई। इसके बाद तो ममू ने कई पन्‍ने खोलकर रख दिए। करीब डेढ़ घण्‍टे इसी पाटे पर व्‍यतीत हुए। यहां से देर रात रवाना होने के बाद मैंने झा से कहा कि बाकी पाटे मैं केवल आपको दिखा देता हूं। स्‍टोरी इन दो जगहों के आधार पर ही बन जानी चाहिए। झा सहमत थे। मैंने उन्‍हें मोहता चौक, कीकाणी व्‍यासों का चौक, हर्षों का चौक आदि स्‍थानों पर पाटे दिखाए और अंत में ले गया दम्‍माणी चौक के छतरी वाले पाटे पर। पूरे समय झा चुपचाप बस देखते रहे। बाद में देर रात जब मैं उनको वापस होटल छोड़ने गया तो उन्‍होंने धन्‍यवाद जैसी कुछ औपचारिकताओं के अलावा पाटे के बारे में कहा...

अद्भुद् 


अब दूसरी बात बीकानेर और उदीने शहर टैस्‍सीटोरी के रूप में एक हस्‍ती को बांटते हैं। कुछ उनकी क्‍योंकि यह हस्‍ती वहां पैदा हुई और कुछ हमारी क्‍योंकि जिन्‍दगी का अधिकांश हिस्‍सा उन्‍होंने बीकानेर में रहकर काम किया और यहीं दिवंगत हुए। उनके बारे में विशद चर्चा फिर कभी..

मंगलवार, 16 सितंबर 2008

तुम मेरी पीठ खुजाओ मैं तुम्‍हारी पीठ खुजाता हूं

पहला सवाल तो यह कि ब्‍लॉगिंग के बाड़े में कमेंट का सांड पहले पहल छोड़ा किसने। ठीक है छोड़ भी दिया तो बाकी के लोगों को कमेंट करके यह कहने की क्‍या जरूरत है कि कमेंट करो। मैं हिन्‍दी भाषी हूं, पढ़ता हूं, लिखता हूं, बोलता हूं, सोचता हूं। कुल मिलाकर मेरे सभी काम हिन्‍दी में ही होते हैं लेकिन कभी मुझे ऐसा नहीं लगा कि मुझे किसी को प्रेरित करने के लिए हिन्‍दी के ब्‍लॉग पर कमेंट लिखने के लिए कहना चाहिए। अब अगला सवाल कि जब सब लोग लिख चुके हैं कुछ पक्ष में तो कुछ विरोध में तो मैं अब क्‍यों जुगाली कर रहा हूं। मेरे पास इसका भी कारण है। हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के शुरूआती वीरों ने नए लोगों को प्रोत्‍साहित करने के लिए इसकी शुरूआत की होगी। अपने लिखे पर संदेश पढ़ते ही मुझे भी बड़ा आनन्‍द आता है लेकिन एनानिमस जैसे अलगाव वादियों और क्षुद्र मानसिकता वाले लोगों के कारण कई बार अच्‍छा खासा लिखने वाला व्‍यक्ति हतोत्‍साहित भी हो सकता है। व्‍यक्ति दो चीजों के लिए जिन्‍दा रहता है। महत्‍व और स्‍पर्श। ब्‍लॉग पर मिली टिप्‍पणी दोनों का अहसास देती है। लेकिन क्‍या आपने कभी सोचा है कि इसका दूसरा पक्ष नुकसान का भी है। कितने लोगों ने आहत होकर अपनी लाइन और लैंथ बिगाड ली है। कितने लोग हैं जो केवल टिप्‍पणी पाने के लिए लिख रहे हैं और पहले कभी शुद्ध विचार लिखने वाले लोग थे। फिर भी एक बात है एक लेखक को हमेशा यह चिंता होती है कि जो कुछ मैं सृजन कर रहा हूं वह लोगों तक पहुंच रहा है या नहीं। कसम से जब से मुझे गूगल एनालिटिक मिला तब से आज तक मैंने किसी की टिप्‍पणी का इंतजार नहीं किया। मेरे ज्‍योतिष दर्शन ब्‍लॉग पर स्‍त्री की सुंदरता विषय पर मैंने बिल्‍कुल परमहंस वाले भाव से लिखा और कुछ महिलाओं ने इसे गलत समझा और मुझे ऐसी टिपिया झाड़ पिलाई कि मेरी‍ घि‍ग्‍घी बंध गई। वो दिन आज का दिन स्‍त्री लिखने से पहले चार बार सोचता हूं। पहले पता होता तो वह पोस्‍ट ही नहीं लिखता। मेरे कहने का अर्थ यही है कि टिप्‍पणी लाइन और लैंथ को बिगाड़ भी सकती है।
इसका एक पहलू राजनीति भी है। अब टिप्‍पणी से ब्‍लॉग का स्‍टेटस आंका जाने लगा तो टिप्‍पणी लेने के लिए भी जुगत होने लगी और आज टिप्‍पणी की हैसियत वोट जैसी हो गई है। हर ब्‍लॉगर और ईमेल धारक की विशिष्‍ट पहचान है। अपनी टिप्‍पणी किसी दूसरे के यहां करके उसे यह आग्रह भी कर दिया जाता है कि भईया मेरे ब्‍लॉग पर भी आईयो।
कुल मिलाकर तूं मेरी पीठ खुजा मैं तेरी पीठ खुजाता हूं...

जय हो
टिपिया देवी की जय
ब्‍लॉगर महाराज की जय
प्‍यारे समीर और शास्‍त्री जी की जय,
ब्‍लॉगवाणी और चिठ्ठाजगत की जय
पूरे हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की जय