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गुरुवार, 27 सितंबर 2012

प्रिय गूगल, जन्‍मदिन की बधाई

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प्रिय गूगल, जन्‍मदिन की ढे़रों बधाइयां और उज्‍ज्‍वल भविष्‍य के लिए शुभकामनाएं। इस बार तुम चौदह साल के हो चुके हो। यकीन नहीं होता कि जिसके बारे में कहा जाता है कि वह सबकुछ जानता है, वह महज चौदह साल का ही है। वास्‍तव में देखा जाए तो यह तुम्‍हारा कम और दुनिया में पिछली सदी में शुरू हुई सूचना क्रांति का चमत्‍कार अधिक नजर आता है। तुम्‍हारी ख़ासियत यही रही कि तुमने उस क्रांति के परों पर सवार होने में कतई देरी नहीं की। कम्‍प्‍यूटर युग का पहला चरण पूरा होने तक तुमने समझ लिया था कि ठीक है लोगों के हाथ में कम्‍प्‍यूटर तो आ गए, लेकिन इसका उपयोग किस तरह होगा। तुमने अपनी पूरी ताकत इस काम में लगा दी कि दुनिया में कहीं भी कुछ भी हो रहा हो, उसे संबंधित यूजर तक किसी भी सूरत में पहुंचा दिया जाए। यह कहते हुए खुशी हो रही है कि तुम इसमें सफल भी रहे हो, हालांकि सुधार की संभावनाएं हमेशा बनी रहती है, फिर भी श्रेष्‍ठ और सर्वश्रेष्‍ठ के अलंकरण उत्‍साह तो बढ़ाते ही हैं।
मेरा तुमसे परिचय 2002 में हुआ। यानी तब तक तुम भी चार साल के हो चुके थे। इसके बाद 2006 में पहली बार मैंने जीमेल खाता बनाया (देखा कितना पुराना साथी हूं तुम्‍हारा), इसके बाद तुमने एक के बाद एक कई एप्‍लीकेशन दी। मैंने तकरीबन हर एप्‍लीकेशन को इस्‍तेमाल करने का प्रयास करता रहा। एक दौर ऐसा भी था जब मैं तुम्‍हारी 31 एप्‍लीकेशंस का तेजी से उपयोग कर रहा था। इस बीच तुम्‍हारे कुछ प्रोजेक्‍ट फेल भी हुए। मसलन बज्‍ज और वेव। इन दोनों में मुझे संभावना दिखाई दे रही थी। भले ही बज्‍ज फेसबुक के बाद आया था, लेकिन तुमने तेजी से अपनी जगह बनाई। भले ही दुनियाभर में फेसबुक तेजी से फैल रहा था, लेकिन भारत में बज्‍ज के दीवाने भी थे। अधिकांश तो ब्‍लॉगर ही दिखाई देते थे।
और हां, ब्‍लॉग, इसने तो मुझे अपने अंदाज में लिखना तक सिखा दिया। पत्रकारिता की नौकरी मुझे बंधी बंधाई लीक पर लिखने के लिए बाध्‍य कर रही थी, तब तुमने मुझे अलग अंदाज से सोचने और लिखने के लिए उत्‍साहित किया। इसका नतीजा यह हुआ कि मेरे लिखने की खुद की शैली बनी। इसका मुझे अपने संस्‍थान में भी फायदा मिला। तुम्‍हारी सफलताओं के लिए तुम्‍हें ढेरों बधाइयां, लेकिन साथ ही कुछ नसीहत भी, ठीक वैसी ही जैसी स्‍पाइडरमैन के अंकल कहते थे “ताकत बढ़ने के साथ जिम्‍मेदारियां भी बढ़ती हैं”। तुम्‍हारे ऊपर भी समय के साथ जिम्‍मेदारियों का बोझ बढ़ रहा है। अब तक जिस बखूबी के साथ इसे निभा रहे हो, उम्‍मीद करता हूं कि भविष्‍य में भी ऐसे ही तटस्‍थ और सक्रिय रहोगे।
गूगल प्‍लस के संबंध में एक सलाह भी, अगर तुम्‍हारे शीर्ष अधिकारियों तक पहुंचे तो, गूगल प्‍लस सेवा फेसबुक से बेहतर साबित हो सकती है, अगर इसके पेज तनिक तेजी से लोड हो। पता नहीं क्‍यों गूगल प्‍लस पर अधिकांश लोग जीआईएफ इमेजेज लगातार लोड करते रहते हैं। एक से दो एमबी की चार या पांच इमेज भी स्‍ट्रीम में होने पर गूगल प्‍लस के खुलने की रफ्तार बैलगाड़ी से मुकाबला करने लगती है। ऐसे में मैं प्‍लस को छोड़कर फिर से फेसबुक पर जा बैठता हूं। उम्‍मीद है इस ओर ध्‍यान दोगे तो स्‍ट्रीम लोड होने की समस्‍या का समाधान होगा और खीज कम होने पर अधिक लोग इस ओर भी आ पाएंगे।
तुम्‍हारे बेहतर भविष्‍य की उम्‍मीद के साथ
पुराना यूजर
सिद्धार्थ जोशी
बीकानेर

शनिवार, 13 सितंबर 2008

इंटरनेट और परमपिता परमात्‍मा

अभी किसी से आत्‍मा और परमात्‍मा के संबंध पर बात हो रही थी। वहीं मुझसे किसी ने पूछा कि आपका ब्‍लॉग काम कैसे करता है। मैंने बताया कि इंटरनेट में एक सुपर कम्‍प्‍यूटर से तार के जरिए दुनियाभर के कम्‍प्‍यूटर जुड़े होते हैं। इतने में यह बात क्लिक हुई कि ईश्‍वर यानि पर‍म पिता और सामान्‍य आत्‍मा तथा सुपर कम्‍प्‍यूटर और पीसी में रिलेशन के तरीके और कार्य करने के तरीके में बहुत अधिक समानताएं हैं। कैसे एक एक कर बताने का प्रयास करता हूं।

परमपिता: वह जिससे यह सृष्टि शुरू हुई है। जो इसे नियंत्रित करता है। जो सभी आत्‍माओं के बीच सेतु का कार्य करता है। जो संवाद स्‍थापित करने का कार्य करता है। सभी आत्‍माएं उसी से मिलने का प्रयास करती हैं। एक आत्‍मा पूर्णता प्राप्‍त कर परमपिता परम ब्रह्म बन जाती है।

आत्‍मा: परमपिता से अलग होकर पृथ्‍वी पर आया उसी का अंश, अपूर्णता के बावजूद खुद का अलग वजूद, हर आत्‍मा अन्‍य आत्‍माओं से जुड़ी होती है। पूर्णता के लिए प्रयास करती है। इस प्रयास के चलते वह ऊंचे आयाम प्राप्‍त करती है। एक दिन परमपिता के पास पहुंच जाती है। वह जो कुछ करती है वह उसे वृहद् स्‍तर पर पहुंचाने के लिए वह परमपिता से प्रार्थना करती है।

सुपर कम्‍प्‍यूटर: इंटरनेट का आधार तैयार करता है (विर्चुअल वर्ड), पीसी इससे जुड़ते हैं, इसका खुद का डाटाबेस होता है जो पीसी के लिए उपयोगी होता है। पीसी इसमें इनपुट करते हैं और एक से दूसरे स्‍थान तक यह सुविधाएं, सेवाएं और इनपुट पहुंचाता है। जैसे जैसे पीसी का विकास होता है इसके द्वारा तैयार डाटा बेस और वेबजाल का भी विकास होता जाता है।

पीसी: यह तीन तरह से काम करता है। एक खुद के सी और डी ड्राइव में और लेन में अन्‍य ड्राइव में तथा इंटरनेट पर। जिस पीसी का जितना जुड़ाव होता है वह उतना ही अधिक उपयोगी होता है। ब्राउजर में जितने अधिक एडओन होंगे इंटरनेट पर उसका जुड़ाव उतना ही अधिक स्‍मार्ट होगा।

जिस तरह ईश्‍वर की आराधना करने के‍ कई तरीके होते हैं वैसे ही इंटरनेट से सुपरकम्‍प्‍यूटर तक पहुंचने के लिए गूगल के क्रोम, मोझिला के फायरफॉक्‍स, माइक्रोसॉफ्ट के इंटरनेट एक्‍सप्‍लोरर और एप्‍पल के सफारी से गूगल,याहू, एमएसएन आदि से सम्‍पूर्णता को प्राप्‍त करने का प्रयास किया जा सकता है।
इति साधू: