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सोमवार, 30 दिसंबर 2013

Kejriwal phenomenon @ a betel shop

पान की दुकान पर केजरीवाल का असर

बुद्धिजीवियों की एक जमात का मानना है कि केजरीवाल का उदय एक प्रकार का प्रतिक्रियावाद या अराजकतावाद है। मौजूद व्‍यवस्‍था से आहत लोग इस व्‍यवस्‍था को चुनौती देने वालों के पक्ष में आ खड़े हुए हैं। लेकिन जमीन देखने के लिए हमारे बीकानेर में पान की दुकान से बेहतर स्‍थान और कोई हो नहीं सकता। सभी बौद्धिक, परा बौद्धिक, अधि भौतिक और अबौद्धिक तक की चर्चाएं इन्‍हीं पान (betel) की दुकानों पर होती हैं। 

इन्‍हीं पान की दुकानों में से एक पर बीती शाम मैं भी उलझ गया। मैं खुद को बद्धि जीवी मानकर वहां उतरा था, लेकिन चर्चा के अंत में लोगों ने स्‍पष्‍ट कर दिया कि न तो मेरे अंदर इतनी बुद्धि है कि केजरीवाल को समझ सकूं न इतना सामर्थ्‍य। मेरे अपने तर्क थे और उन लोगों के अपने। चर्चा कुछ इस प्रकार हुई। 

मैंने कहा - केजरीवाल आम आदमी (Aam Aadmi) का स्‍वांग भरकर मीडिया के जरिए लोगों के सेंटिमेंट भुनाने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए मैंने उदाहरण दिया कि इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया में गैले गूंगे चैनल को भी प्रति एक सैकण्‍ड का पांच से दस हजार रुपए वसूलना होता है। ऐसे में पूरे पूरे दिन केजरीवाल के गीत गाने वाले न्‍यूज चैनल्‍स का खर्चा का मुफ्त में चलता होगा। या कोई दैवीय सहायता प्राप्‍त होती है। 

जवाब मिला : मीडिया को भी टीआरपी (TRP) चाहिए। आज हर कोई केजरीवाल को देखना चाहता है। ऐसे में मीडिया की मजबूरी है कि वह केजरीवाल और उसके आंदोलन को दिखाए। अगर चैनलों को खुद को दिखाना है तो केजरीवाल को दिखाना ही पड़ेगा। वरना उस चैनल की टीआरपी धड़ाम से नीचे आ गिरेगी। 

मैंने कहा : केजरीवाल ने आम आदमी के नाम पर जितने आंदोलन किए हैं सभी विफल रहे हैं। केवल जबानी लप्‍पा लप्‍पी (verbal jiggaling) की मुद्रा ही रही है। 

जवाब मिला: अब तक किसने आम आदमी की आवाज उठाई है। भाजपा (BJP) और कांग्रेस (CONGRESS) तो एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। बाकी दल भी अपनी ही रोटियां सेंकने का काम कर रहे हैं। पहली बार कोई आदमी ऐसा आया है, जिसने आम आदमी की बात की है और उसकी ओर से लड़ाई लड़ी है। उसके प्रयास ही काफी हैं। सफलता और विफलता तो ऊपर वाले की देन है। 

मैंने कहा : केजरीवाल कांग्रेस से मिला हुआ है। यह उनकी बी टीम (B Team) है। 

जवाब मिला : कांग्रेस और बीजेपी वाले अपनी रांडी रोणा करते रहेंगे। एक कहेगा दूसरे की बी टीम है और दूसरा कहेगा पहले की बी टीम है। आज केजरीवाल दोनों के भूस भर रहा है। जनता इन भ्रष्‍ट (Currupt) नेताओं की ऐसी तैसी कर देगा। 

मैंने कहा : एक साल पहले आए इस नए नेता के पास न तो देश के लिए वीजन (Vision) है न ही इसका कोई पॉलिटिकल बैकग्राउंड (Political background) है। ऐसे में हम कैसे कह सकते हैं कि यह आम आदमी को राहत दिलाने का काम करेगा। 

जवाब मिला: जो पहले से अनुभवी लोग हैं उन्‍होंने कौनसे काम करवा दिए। सब अपना घर भरने में लगे हैं। यह बदलाव की बयार लेकर आया है तो जरूर काम करेगा। कम से कम एक नए आदमी को मौका तो दे रहे हैं। 

मैंने कहा : केजरीवाल बहुत अधिक अकल लगाकर काम कर रहा है। केवल दिल्‍ली (Delhi) में आंदोलन करता है और पूरे देश पर छा जाता है। केवल मैट्रो सिटी (Metro city) के लोगों की भावनाएं ही भुना रहा है। देश के अन्‍य हिस्‍सों में इसका कोई खास असर नहीं है। 

अब लोग तैश में आ गए, बोले: भो##** के गांव गांव तक जाकर केजरीवाल का नाम सुन ले। (एक ने खाजूवाला जो कि सीमा से सटा हुआ कस्‍बा है, दूसरे ने श्रीकोलायत, तीसरे ने लूणकरनसर में चल रही हवा के बारे में जानकारी दी।)

जब मेरे तर्क और क्षमता जवाब दे गए तो पान की दुकान पर मेरी जमकर मलामत की गई। मुझे नेताओं का पिठ्ठू करार दिया गया और बताया गया कि मैं जमीनी हकीकत (Ground realities) से कोसों दूर हूं। अब देश में तेजी से बदलाव आ रहा है और इस बदलाव के रथ को केजरीवाल चला रहा है। जल्‍द ही लोकसभा और ग्राम सरपंच तक के चुनावों में आम आदमी पार्टी ही राज करेगी। हर घर में आज टीवी चैनल है और सब देख रहे हैं कि देश में क्‍या हो रहा है।

मैंने रूंआसा होकर पूछा मोदी (Modi) ? 

जवाब आया: मोदी ने किया होगा गुजरात में काम, लेकिन आज देश को अगर जरूरत है तो केजरीवाल की है। वही देश की लय को सुधार सकता है। वही है आने वाले जमाने की ताजी बयार। वहीं से परिवर्तन की शुरूआत होगी। भाजपा और कांग्रेस तो एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। 

अब मैं सोच रहा हूं कि अगर पान की दुकान से लेकर गांवों (Gaanv) तक अगर केजरीवाल फैल चुका है तो क्‍या मोदी केवल अपनी सोशल मीडिया फौज पर ही राज कर रहा है। सोशल मीडिया पर भी देख रहा हूं कि बुद्धिजीवियों का एक बड़ा तबका केजरीवाल को हृदय से स्‍वीकार कर चुका है और जिस प्रकार अमिताभ बच्‍चन की छोटी मोटी भूलों को भी पर्दे पर उनकी स्‍टाइल में शामिल कर देखा जाता रहा है, उसी प्रकार केजरीवाल के प्रयासों में रही कमियों को इसी प्रकार नजरअंदाज करने का दौर चल रहा है। 

आपको क्‍या लगता है ? 

गुरुवार, 25 जून 2009

सब कुछ है गांधीमय (रिंग, रिंग रिंगा भाग तीन)

mahatma-gandhi-indian-hero मैं आजादी के बाद की बात कर रहा हूं। उससे पहले भले ही गांधीजी का जीवंत करिश्‍मा रहा होगा लेकिन इसके बाद कैश कराने की प्रवृत्ति के चलते सबकुछ गांधीमय हो चुका है। गांधी टोपी पहनी तो इसलिए कि गांधीजी ने कहा है और उतारकर रख दी तो इसलिए कि गांधीजी खुद नंगे सिर रहते थे। एक तरफ दलितों के उत्‍थान का विचार है तो दूसरी तरफ दलितों से बराबरी की शुद्ध भावना।

देश में एक बार फिर कांग्रेस की सरकार बन चुकी है। इस कारण नहीं कि मनमोहन सिंह की सरकार ने नरेगा में रोजगार दिया और किसानों के कर्जे माफ किए। या अमरीका से संधि की। बल्कि युवा गांधी के अथक प्रयासों से बुढ़ाती कांग्रेस में नई जान आ गर्इ। युवा नेता ने मंत्री बनने के बजाय संगठन में काम करने की सोची है। अब युवाओं के सामने एक ही लक्ष्‍य है, संगठन को मजबूत करना। परीक्षा दो और सफल हो जाओ। इससे कतार में आखिरी खड़े आदमी को भी लाभ होगा। यही तो गांधीजी चाहते थे।

ठीक है देश का नेतृत्‍व जवान लोग करेंगे। स्‍थानीय प्रतिनिधि से लेकर राष्‍ट्रीय स्‍तर पर युवा ही देश की बागडोर को थामे रहेंगे। तो बूढ़े क्‍या करेंगे?

बूढे चिंतन करेंगे। आज की समस्‍याएं और गांधी। आज की समस्‍याओं पर चिंतन उन्‍हें मुख्‍यधारा का अहसास कराएगा और गांधी युवाओं की समुद्री आंधी से बचाए रखेगा। तो आइए चिंतन करते हैं आज की कुछ समस्‍याओं पर।

आतंकवाद- आप कहेंगे वाह क्‍या विषय चुना है। आतंकवाद की जड़ असंतोष में है। गांधीजी ने संतोषी प्रवृत्ति का पाठ पढ़ाया था। आतंकवादियों को संतोषी होना चाहिए और सुरक्षा बलों को अहिंसक। बाकी रघुपति राघव राजा राम तो हैं ही। कहीं गए थोड़े ना ही हैं। गांधी हमारे दिल में है और राम सर्वव्‍यापी हैं।

दूसरा मुद्दा बेरोजगारी- (कृपया आरक्षण शब्‍द का इस्‍तेमाल कर इसे राजनीतिक रूप देने की कोशिश न करें।) गांधी ने ग्राम स्‍वराज्‍य का मॉडल दिया था। हर गांव आत्‍मनिर्भर हो तो बेरोजगारी की समस्‍या स्‍वत: ही दूर हो जाएगी। इसके लिए केन्‍द्र की ओर मुंह ताकने की जरूरत नहीं है। संयम और ईमानदारी से ग्राम स्‍वराज्‍य भी बन जाएगा और रामराज्‍य भी आ जाएगा।

सांप्रदायिकता: गांधीजी ने कहा था कि सब मनुष्‍य समान हैं। बस अंग्रेजों को भगा दो। बाकी लोग अपने ही हैं। उनके लिए तो पाकिस्‍तान बनना भी एक सदमा था। गांधीजी ने सर्वजन हिताय की बात की थी। इसमें क्‍या हिन्‍दु, क्‍या मुसलमान, क्‍या सिक्‍ख और क्‍या इसाई। उनकी नजर में तो सब बराबर थे। हमें उनसे सीख लेनी चाहिए।

ऐसे हजारों मुद्दे हैं जिन पर वरिष्‍ठ नेता पद और लाभ का मोह छोड़कर चिंतन कर सकते हैं। अब देश की बागडोर युवा कंधों पर है तो उन्‍हें देखें और सराहें। जब सलाह की जरूरत होगी तो मांग ली जाएगी। तब तक वे चिंतन करें।

वास्‍तव में गांधी ऐसी चीज है जो हर जगह फिट होती है। किसी भी बिंदु पर चिंतन करो। घुमा फिराकर घुसा दो गांधी में। दलित उद्धारक की छवि से लेकर हजार रुपए के नोट तक गांधी एक जैसे हैं। समस्‍याओं के पैदा होने से लेकर उनके समाधान तक गांधी वैसे ही मुस्‍कुराते हुए मिलते हैं। चलिए अगले करिश्‍मे तक यही सही...

रिंग रिंग रिंगा है आभासी आशावाद। फिल्‍म ने पैदा किया। गरीबी दिखाई। घनघोर दिखाई, विद्रुपताओं की पराकाष्‍ठा दिखाई और अंत में भाग्‍य की जीत दिखाई। भारत भाग्‍य विधाता है और गांधी राष्‍ट्रपिता। स्‍वागत कीजिए पांचवी पीढ़ी के युवा नेता का।