सोमवार, 6 जनवरी 2014

Drinking water : It's Culture and understanding with your body!!

पानी पीना : जिंदगी की जरूरत ही नहीं, जीने का सलीका है

Sidharth joshi: drinking water. Photo Aziz Bhutta
मेरी तीन शारीरिक समस्‍याएं ऐसी थी, जो इतने अर्से से है कि अब तो मैं उनके साथ ही जीने का अभ्‍यस्‍त होने लगा था। पहली गैस (Gastric), दूसरी कोष्‍ठबद्धता (Indigestion) और तीसरी धरण (Dharan)। मुझे इन तीनों समस्‍याओं का समाधान एक साथ एक जगह मिला है। वह भी केवल पानी पीने से... 

              अभी कुछ दिन पहले की बात है कि मेरे एक वरिष्‍ठ साथी ज्‍योतिषी (Astrologer) अपने नए फोन के साथ आए और फोन दिखाते हुए राजीव दीक्षित की वाटर सीरीज चला बैठे। श्री राजीव दीक्षित (Rajiv dixit) की ओजस्‍वी आवाज एक बार शुरू हुई तो न तो मैंने रोका न उन्‍होंने। करीब पैंतीस मिनट के ऑडियो में राजीवजी ने बताया कि महर्षि चरक के शिष्‍य वागभट्टजी ने करीब सात हजार सूत्र लिखे हैं जो हमें स्‍वस्‍थ रहने की शिक्षा देते हैं। इसी के तहत जल से चिकित्‍सा पर जो बातें बताई वे इस ऑडियो में है... 

            हालांकि ऑडियो में और भी कई बातों का समावेश किया गया है, लेकिन जैसा कि हमारी जीवनचर्या है, हम सभी प्रकार के उपायों को एक साथ नहीं अपना सकते। ऐसे में मैंने दो अनुशासन को अपनाने का तुरंत निर्णय किया। 

पहला है खाने के बाद किसी सूरत में पानी नहीं पीना
दूसरा सुबह उठते ही बिना कुल्‍ला किए करीब सवा लीटर पानी पीना। 

पहले पहला प्रयोग खाना खाने के बाद पानी नहीं पीना

इस बाबत राजीवजी ने बताया कि हमारे मुंह में बनने वाले लार (Saliva) का पीएच (Ph) अधिक होता है और अमाशय (Stomach) के भीतर तेज अम्‍ल (Acid) स्रावित होता है, जिसका पीएच 3 तक भी पहुंच सकता है। ऐसे में लार के साथ पेट में गया भोजन अम्‍ल के साथ मिलते ही लवण (Salt) और जल बना देता है। इसे कहते हैं पेट का पानी होना। आयुर्वेद (Ayurveda) में भी पेट पानी की तरह होने पर भी स्‍वस्‍थ बताया गया है। अब जब हम खाना खाने के बाद भरपेट पानी पी लेते हैं तो अम्‍ल और क्षार के मिलने की प्रक्रिया को बाधित कर देते हैं और स्‍वादिष्‍ट से स्‍वादिष्‍ट पकवान भी कीचड़ में तब्‍दील हो जाता है। 
               खाने के ठीक बाद पीया गया यह पानी विष के समान (Poisonous) बताया गया है। यह न केवल अम्‍ल क्षार की अंतर्क्रिया को प्रभावित करता है, बल्कि पूरी पाचन तंत्र (Digestive system) को सुस्‍त बना देता है। इस कारण जठराग्नि मंद हो जाती है और हमें भूख भी सही तरीके से लगनी बंद हो जाती है। ऐसे में खाने के बाद पानी किसी भी सूरत में पीना ठीक नहीं है। 

(एक स्‍थान पर उन्‍होंने कहा कि खाने के बीच दो घूंट पानी पीने की अनुमति केवल वहां है जहां हम दो प्रकार का अन्‍न ग्रहण कर रहे हों तो दोनों अन्‍न के बीच के समय हम दो घूंट पानी पी सकते हैं।)

दूसरा प्रयोग सुबह उठकर पानी पीना

हमारे मुंह में करीब एक लाख लार ग्रंथियां (Glands) हैं जो लगातार लार का स्राव करती रहती हैं। ये लार केवल भोजन को पचाने का काम नहीं करती, बल्कि शरीर के लिए आवश्‍यक तत्‍वों (Essential elements) को भी लार में ही शामिल कर देती है। (यहां मैं अपने समझने वाली प्रक्रिया को भी शामिल करूंगा) मेरे मेडिकल के दोस्‍त बताते हैं कि हमारी आहार नाल को "गट" (GUT) कहा जाता है। यह गट एक प्रकार का बर्हिचर्म है। यानी जिस प्रकार शरीर के ऊपर की चमड़ी (Skin) शरीर के भीतर के अंगों से विलग रहती है, ठीक उसी प्रकार गट भी शरीर के भीतर के अन्‍य अंगों से अलग रहती है। 

              ऐसे में अगर हमारे शरीर को हमारे पाचन तंत्र में किसी प्रकार की घुसपैठ करनी हो तो वह लार अथवा अन्‍य स्रावी ग्रंथियों के माध्‍यम से ही शरीर से संपर्क कर सकता है। लाइव टच में नहीं रहता। ऐसे में लार में शरीर के लिए आवश्‍यक पोषण एवं उपचारात्‍मक तत्‍वों का शामिल होना स्‍वाभ‍ाविक है। 

               पूरी रात लार ग्रंथियां सक्रियता के साथ काम करती हैं और शरीर के लिए जरूरी तत्‍वों की समीक्षा करके सुबह तक उन्‍हें हमारे मुंह में पहुंचा देती है। हम केवल इतना ही करते हैं कि सुबह उठते ही कुल्‍ला करते हैं और उन सभी जरूरी तत्‍वों को मुंह से बाहर फेंक देते हैं। 

               राजीव दीक्षित कहते हैं यहीं पर सबसे बड़ी भूल होती है। अगर सुबह उठते ही बिना कुल्‍ला किए करीब सवा लीटर पानी स्‍वस्‍थ युवा और पौन लीटर पानी वृद्ध अथवा बच्‍चे पीएं तो वे अपेक्षाकृत अधिक स्‍वस्‍थ रह सकेंगे। वे तो यहां तक उदाहरण देते हैं कि लार का औषधीय महत्‍व इंसानों से अधिक जानवर समझते हैं जो कहीं भी चोट लग जाने पर उसे लगातार चाटते रहते हैं। इससे घाव जल्‍दी भर जाता है। 

इन दोनों बातों में एक बात आवश्‍यक रूप से शामिल है कि कभी भी न तो ठण्‍डा पानी पीओ न गर्म। हमेशा ऐसा पानी पीना (Drinking water) चाहिए जिसका तापमान शरीर के तापमान के बराबर (Body temperature) हो। 

देखने में यह प्रयोग आसान लगता है, लेकिन प्रण लेने के तीसरे ही दिन मुझे जीमण (विवाह समारोह) में जाना था और वहां पर खाने के बाद आइसक्रीम परोसी जा रही थी। मेरा जी जानता है कि मैंने कितनी मुश्किल से खुद को रोककर रखा। लेकिन खुद को रोक पाया क्‍योंकि इसका फायदा मैं अगले ही दिन ले चुका था। 

अब लाभ की बात 
जिस दिन ऑडियो सुना उसी रात खाना खाने के बाद मैंने पानी नहीं पिया। रात को डटकर खाया गया खाना हर पांच मिनट में पानी मांग रहा था और आदत के अनुसार मैं बार-बार चरू (स्‍टील की मटकी) तक पहुंच रहा था, लेकिन किसी प्रकार खुद को रोके रहा। रात साढ़े ग्‍यारह बजे आखिर मैंने पानी पीया। यह बॉडी टैंपरेचर तक गर्म नहीं था, ठण्‍डा पानी था। यह पानी गर्म हुए पेट में पहुंचा तो पहली बार खाना खाने के बाद पानी की ठण्‍डक को पेट में महसूस किया और उसी समय गलती समझ में आ गई। 

                  मैंने धर्मपत्‍नीजी को सारी कथा आदि से अंत तक कह सुनाई। अगले दिन सुबह उठते ही मुझे गुनगुना पानी मिल गया। मैंने सवा लीटर कहा था सो एक आधा लीटर का लोट पेश था और बाकी पानी टोपिए में मेरा इंतजार कर रहा था। कहना आसान है सवा लीटर गुनगुना पानी। अभी पहला लोटा खत्‍म ही किया था कि इंतजार कर रही चाय की ओर भी नहीं देख पाया और सीधा शौच के लिए भागा। पेट आम दिनों के मुकाबले अच्‍छा साफ हुआ। काफी देर तक तो गैस निकलती रही (आप भले ही नाक भौं सिकोड़ें मुझे जो आराम मिला वही बता रहा हूं।) पूरा शरीर हल्‍का हुआ जान पड़ा। अब तो सवाल ही पैदा नहीं होता कि मैं खाने के बाद पानी पी लूं। 

                    पिछले 22 या 23 दिन से यह प्रयोग जारी है। शुरूआती दिनों में पहले कोष्‍ठबद्धता का निवारण हुआ, फिर पेट में भरी गैस का, फिर शरीर में जगह जगह जमा चर्बी की परतें पिघलने लगी। कुछ पेंटें जिनके बटन जवाब देने लगे थे, फिर से सहज हो गई। और तीन चार दिन से तो दूसरे लोग भी अब कहने लगे हैं कि पतला कैसे हो रहा है, कोई चिंता तो नहीं। 

                     यह तो हुए प्रत्‍यक्ष लाभ और एक लाभ ऐसा है जिसे कम लोग समझ पाएंगे। हमारे यहां इसे "धरण" कहते हैं। हर महीने सवा महीने बाद मेरी धरण खिसक जाती थी। ऐसे में पीठ और गर्दन में दर्द की लहरें चलती। गैस के कारण सिरदर्द मेरे लिए आम है, लेकिन धरण का दर्द बर्दाश्‍त के बाहर है। धरण वापस चढ़ाने के लिए मैंने दो लोगों को पकड़ा हुआ है। वे भी मुझसे आजिज आए हुए थे। उनमें से एक कल रात को मिला तो उसे मैंने पूरी कथा बताई। अब मेरी धरण भी बिल्‍कुल सही है। स्‍पष्‍ट तो नहीं कहा जा सकता कि गैस के कारण धरण उतरती है, लेकिन गैस और कोष्‍ठबद्धता के निवारण के साथ मेरी धरण की समस्‍या का भी अब तक तो समाधान हो चुका है। 

                   पेट हल्‍का है, दिमाग खुला है, प्रसन्‍नता हिलोरें ले रही है। अगर कोई राजीव दीक्षित की सीडी सुने और कहे कि आप भी करें तो आप चाहें मान या ना मानें, लेकिन मैंने सुनी है, प्रयोग किए हैं और लाभ प्राप्‍त किए हैं। अब मैं कहता हूं कि कम से कम यह दो प्रयोग करके देखें। आमूलचूल परिवर्ततन आता है। 

यहां मैं लिंक दे रहा हूं जिसमें राजीव दीक्षितजी के वे ऑडियो दिए गए हैं 


उन्‍हें हृदय से नमन। जब वे जीवित थे, तभी इन बातों को सुनना और अपनाना शुरू कर चुका होता तो... खैर। 

सोमवार, 30 दिसंबर 2013

Kejriwal phenomenon @ a betel shop

पान की दुकान पर केजरीवाल का असर

बुद्धिजीवियों की एक जमात का मानना है कि केजरीवाल का उदय एक प्रकार का प्रतिक्रियावाद या अराजकतावाद है। मौजूद व्‍यवस्‍था से आहत लोग इस व्‍यवस्‍था को चुनौती देने वालों के पक्ष में आ खड़े हुए हैं। लेकिन जमीन देखने के लिए हमारे बीकानेर में पान की दुकान से बेहतर स्‍थान और कोई हो नहीं सकता। सभी बौद्धिक, परा बौद्धिक, अधि भौतिक और अबौद्धिक तक की चर्चाएं इन्‍हीं पान (betel) की दुकानों पर होती हैं। 

इन्‍हीं पान की दुकानों में से एक पर बीती शाम मैं भी उलझ गया। मैं खुद को बद्धि जीवी मानकर वहां उतरा था, लेकिन चर्चा के अंत में लोगों ने स्‍पष्‍ट कर दिया कि न तो मेरे अंदर इतनी बुद्धि है कि केजरीवाल को समझ सकूं न इतना सामर्थ्‍य। मेरे अपने तर्क थे और उन लोगों के अपने। चर्चा कुछ इस प्रकार हुई। 

मैंने कहा - केजरीवाल आम आदमी (Aam Aadmi) का स्‍वांग भरकर मीडिया के जरिए लोगों के सेंटिमेंट भुनाने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए मैंने उदाहरण दिया कि इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया में गैले गूंगे चैनल को भी प्रति एक सैकण्‍ड का पांच से दस हजार रुपए वसूलना होता है। ऐसे में पूरे पूरे दिन केजरीवाल के गीत गाने वाले न्‍यूज चैनल्‍स का खर्चा का मुफ्त में चलता होगा। या कोई दैवीय सहायता प्राप्‍त होती है। 

जवाब मिला : मीडिया को भी टीआरपी (TRP) चाहिए। आज हर कोई केजरीवाल को देखना चाहता है। ऐसे में मीडिया की मजबूरी है कि वह केजरीवाल और उसके आंदोलन को दिखाए। अगर चैनलों को खुद को दिखाना है तो केजरीवाल को दिखाना ही पड़ेगा। वरना उस चैनल की टीआरपी धड़ाम से नीचे आ गिरेगी। 

मैंने कहा : केजरीवाल ने आम आदमी के नाम पर जितने आंदोलन किए हैं सभी विफल रहे हैं। केवल जबानी लप्‍पा लप्‍पी (verbal jiggaling) की मुद्रा ही रही है। 

जवाब मिला: अब तक किसने आम आदमी की आवाज उठाई है। भाजपा (BJP) और कांग्रेस (CONGRESS) तो एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। बाकी दल भी अपनी ही रोटियां सेंकने का काम कर रहे हैं। पहली बार कोई आदमी ऐसा आया है, जिसने आम आदमी की बात की है और उसकी ओर से लड़ाई लड़ी है। उसके प्रयास ही काफी हैं। सफलता और विफलता तो ऊपर वाले की देन है। 

मैंने कहा : केजरीवाल कांग्रेस से मिला हुआ है। यह उनकी बी टीम (B Team) है। 

जवाब मिला : कांग्रेस और बीजेपी वाले अपनी रांडी रोणा करते रहेंगे। एक कहेगा दूसरे की बी टीम है और दूसरा कहेगा पहले की बी टीम है। आज केजरीवाल दोनों के भूस भर रहा है। जनता इन भ्रष्‍ट (Currupt) नेताओं की ऐसी तैसी कर देगा। 

मैंने कहा : एक साल पहले आए इस नए नेता के पास न तो देश के लिए वीजन (Vision) है न ही इसका कोई पॉलिटिकल बैकग्राउंड (Political background) है। ऐसे में हम कैसे कह सकते हैं कि यह आम आदमी को राहत दिलाने का काम करेगा। 

जवाब मिला: जो पहले से अनुभवी लोग हैं उन्‍होंने कौनसे काम करवा दिए। सब अपना घर भरने में लगे हैं। यह बदलाव की बयार लेकर आया है तो जरूर काम करेगा। कम से कम एक नए आदमी को मौका तो दे रहे हैं। 

मैंने कहा : केजरीवाल बहुत अधिक अकल लगाकर काम कर रहा है। केवल दिल्‍ली (Delhi) में आंदोलन करता है और पूरे देश पर छा जाता है। केवल मैट्रो सिटी (Metro city) के लोगों की भावनाएं ही भुना रहा है। देश के अन्‍य हिस्‍सों में इसका कोई खास असर नहीं है। 

अब लोग तैश में आ गए, बोले: भो##** के गांव गांव तक जाकर केजरीवाल का नाम सुन ले। (एक ने खाजूवाला जो कि सीमा से सटा हुआ कस्‍बा है, दूसरे ने श्रीकोलायत, तीसरे ने लूणकरनसर में चल रही हवा के बारे में जानकारी दी।)

जब मेरे तर्क और क्षमता जवाब दे गए तो पान की दुकान पर मेरी जमकर मलामत की गई। मुझे नेताओं का पिठ्ठू करार दिया गया और बताया गया कि मैं जमीनी हकीकत (Ground realities) से कोसों दूर हूं। अब देश में तेजी से बदलाव आ रहा है और इस बदलाव के रथ को केजरीवाल चला रहा है। जल्‍द ही लोकसभा और ग्राम सरपंच तक के चुनावों में आम आदमी पार्टी ही राज करेगी। हर घर में आज टीवी चैनल है और सब देख रहे हैं कि देश में क्‍या हो रहा है।

मैंने रूंआसा होकर पूछा मोदी (Modi) ? 

जवाब आया: मोदी ने किया होगा गुजरात में काम, लेकिन आज देश को अगर जरूरत है तो केजरीवाल की है। वही देश की लय को सुधार सकता है। वही है आने वाले जमाने की ताजी बयार। वहीं से परिवर्तन की शुरूआत होगी। भाजपा और कांग्रेस तो एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। 

अब मैं सोच रहा हूं कि अगर पान की दुकान से लेकर गांवों (Gaanv) तक अगर केजरीवाल फैल चुका है तो क्‍या मोदी केवल अपनी सोशल मीडिया फौज पर ही राज कर रहा है। सोशल मीडिया पर भी देख रहा हूं कि बुद्धिजीवियों का एक बड़ा तबका केजरीवाल को हृदय से स्‍वीकार कर चुका है और जिस प्रकार अमिताभ बच्‍चन की छोटी मोटी भूलों को भी पर्दे पर उनकी स्‍टाइल में शामिल कर देखा जाता रहा है, उसी प्रकार केजरीवाल के प्रयासों में रही कमियों को इसी प्रकार नजरअंदाज करने का दौर चल रहा है। 

आपको क्‍या लगता है ? 

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

Kejriwal's angle : Paradigm shift or hidden agenda "2014"

मुझे पहला आश्‍चर्य तब हुआ तब राजीव शुक्‍ला (Rajiv Shukla) का चैनल पूरे दिन राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के एक भाषण में रही कमी को लेकर उसकी पूंछ फाड़ने का प्रयास करता रहा। यह अजीब मसला था। अब तक जो संस्‍थान जिन लोगों के भरोसे या सही शब्‍द कहें कि कृपा से जी रहा था, वह अचानक हिंदी का पैरोकार बनकर सीधे राहुल गांधी पर ही आक्रमण कर रहा था। 

                उत्‍तर प्रदेश चुनाव में राहुल गांधी के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka gandhi wadra) और उनके बच्‍चे भी जब सहानुभूति की लहर पैदा करने में विफल रहे तो कांग्रेस को सत्‍ता विरोधी लहर को दबाने का यही एक तरीका समझ में आया कि इस आग की झुलस को विपरीत दिशा की आग से ही काबू में किया जाए।


आग से आग बुझाने की पद्धतियों में से एक फायर ब्रेक (Fire Break) है। यह दो तरह से काम करती है। पहला तो यह कि जंगल या घास के मैदान की आग के बीच अंतराल पैदा किया जाए ताकि ईंधन की आपूर्ति बाधित हो और साथ ही आग जिस दिशा में बढ़ रही हो, उसी दिशा में आगे जाकर फायर लाइन (Fire line) बना दी जाए। यह फायर लाइन रास्‍ते की ऑक्‍सीजन (Oxygen) को खत्‍म कर देती है और पीछे से आ रही आग बीच का गैप होने और ऑक्‍सीजन की कमी के चलते दम तोड़ देती है। इससे बीहड़ या घास का मैदान बचा रह जाता है। राजनीति के इस बीहड़ को बचाने के‍ लिए केजरीवाल फायर ब्रेकर सिद्ध हो सकते हैं। 


मुझे केजरीवाल शुरू से ही फायर ब्रेकर ही दिखाई दिए।  पहली तो उनकी एंट्री ही रजनीकांत (Rajnikant) वाले अंदाज में होती है। अब चूंकि वे सितारा हैसियत के थे नहीं, तो इसके लिए भारत के दक्षिणी पश्चिमी कोने में अपना काम कर रहे अन्‍ना हजारे (Anna hazare) को उठया गया। आम आदमी (Aam Admi) के नाम पर आंदोलन किया गया। एक के बाद दूसरी हस्तियां कतार में आती गई और उनका दोहन कर केजवरीवाल आगे आते रहे। मैं यह नहीं मानता कि शुरू से ही अरविन्‍द केजरीवाल को ही इस काम के लिए नियुक्‍त किया गया होगा, लेकिन प्रमुख लोगों में एक शामिल रहे होंगे। 

                आगे के सूत्रों को खुला छोड़े रखे जाने के लिए जरूरी है कि एक से अधिक विकल्‍प साथ लेकर ही चला जाए। मैं देखता हूं कि केजरीवाल दूसरों को पछाड़ आगे निकलते गए। लोकपाल (Lokpal) के लिए संघर्ष हुआ। इसके बाद अन्‍ना हजारे का कद घटाने वाला गुजरात का चुनाव हुआ। अन्‍ना का कद घटाने वाला इसलिए क्‍योंकि अन्‍ना को लाया ही इसलिए गया था कि भ्रष्‍टाचार या अन्‍य मुद्दों की बात कर वे जनता में अपनी तगड़ी छवि बनाए जो वास्‍तव में सरकार के विरुद्ध दिखाई दे। इसके बाद गुजरात (Gujrat) चुनाव के समय अन्‍ना का परीक्षण किया गया। जिसमें वे बुरी तरह फेल साबित हुए। 

                यही से अरविन्‍द केजरीवाल घटना का उदय शुरू हो गया था। अब पांच राज्‍यों के चुनाव तक यह फायर लाइन अधिक काम नहीं कर पाई। क्‍योंकि मोदी ने भी गुजरात को छोड़कर कहीं और कुछ भी नहीं किया था। हद तो यह है कि उत्‍तर भारत के अधिकांश राज्‍यों में मोदी के आदमी अभी केवल जमीन तैयार करने का काम कर रहे हैं। जैसे उत्‍तरप्रदेश और बिहार में अमित शाह। ऐसे में सीधा मोदी पर हमला बोले जाने की संभावनाएं क्षीण हो गई। 

                अब पांच राज्‍यों के विधानसभा चुनाव आते हैं तो अपना आकार बढ़ाने में नाकामयाब रही इस फायरलाइन के पास दिल्‍ली (Delhi) का ही विकल्‍प शेष रहता है। क्‍यों‍कि ये फायर फाइटर देख चुके थे कि दिल्‍ली से बाहर महाराष्‍ट्र (Maharashtra) में इसी प्रकार का प्रयास बुरी तरफ फ्लॉप सिद्ध हो चुका था। अन्‍य राज्‍यों में भी धरना प्रदर्शन किए गए, लेकिन कहीं से प्रभावी फीडबैक नहीं मिला। 

(राज्‍यों के छोटे छोटे जिलों में से अधिकांश में सूचना के अधिकार के कार्यकर्ता केजरीवाल एण्‍ड कंपनी के साथ दिखाई दे रहे हैं, क्‍यों? पता नहीं।)

ऐसे में मेन स्‍ट्रीम मीडिया के साथ भावुक होने वाली मैट्रो दिल्‍ली ही सबसे मुफीद जगह हो सकती थी। केजरीवाल ने यही काम किया। दिल्‍ली में पूरी ताकत झोंक दी गई। पूरी ताकत झोंक दी गई, किसकी ? 

                स्‍पष्‍ट तौर पर न भी कहा जाए तो केवल इस तथ्‍य को समझा जा सकता है कि दिल्‍ली में जितने कुल वोट पड़े उसमें करीब सत्रह प्रतिशत वोट तो केवल आखिरी आधे घंटे में पड़े। अब आम आदमी पार्टी को मिले मतों को देखा जाए तो लगता है कि उन सत्रह प्रतिशत लोगों ने कांग्रेस को तो वोट नहीं ही दिया होगा। अगर भाजपा को ही वोट देना होता तो शाम साढ़े चार बजे तक किसका इंतजार करते। खैर, आम आदमी पार्टी के नौ कैंडिडेट करीब एक हजार वोटों के अंतर से जीत गए। 

                अगर केजरीवाल एण्‍ड पार्टी को अब भी फायर ब्रेकर ही समझा जाए तो आम आदमी पार्टी की यह जीत उनके खुद के रास्‍ते में एक बड़ी बाधा बनकर उभर आई है। सत्‍ता का मद खुद केजरीवाल पर भारी पड़ रहा है। क्‍योंकि यह फायर लाइन तो बनाई गई है वर्ष 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए, लेकिन इसका बड़ा भाग यहीं दिल्‍ली में टूट और बिखर रहा है। ऐसे में अगर हवा विपरीत हो जाती है तो यह फायर लाइन की आग ही फायर फाइटर्स को लील लेगी। 

अब मुझे तीन स्थितियां समझ में आ रही है 

                - वर्ष 2014 के चुनाव के लिए सक्रिय बने रहना है और देशभर में आम आदमी पार्टी की जड़ें फैलानी है तो केजरीवाल को दिल्‍ली की गद्दी छोड़नी पड़ेगी। लेकिन यहां एक समस्‍या यह हो गई है कि सभी प्रमुख लोगों को लोकसभा चुनाव के लिए रोका गया था, अब अधिकांश चुनकर आए लोग ऐसे हैं कि दिल्‍ली की गद्दी उन्‍हें सौप दी जाए तो आम आदमी पार्टी की पहली मुख्‍यमंत्री की कुर्सी ही रजिया गुंडों में वाली हालत में पहुंच जाएगी। ऐसे में खुद केजरीवाल को ही यह भार झेलना पड़ेगा। 

                - दिल्‍ली की मुख्‍यमंत्री की कुर्सी को बचाने में कामयाब होते हैं। ऐसे में 7 मार्च के बाद भी राज्‍य सरकार बनी रहती है और कांग्रेस का समर्थन जारी रहता है तो भाजपा के नए नेतृत्‍व और शक्तिशाली विपक्ष को भी झेलना केजरीवाल की मजबूरी होगी। ऐसे में लोकसभा में मोदी से लड़ने का सपना यहीं कुचलकर खत्‍म हो जाएगा। ऐसे में लोकसभा की बागडोर किसी अन्‍य के हाथ में दी जा सकती है। 

छीन झपट कर और पाले पोसे गए इस सपने को केजरीवाल भी किसी और को नहीं देना चाहेंगे। तब वे सरकार गिराकर और कांग्रेस को गालियां निकालते हुए जनता की सहानुभूति के रथ पर सवार हो सकते हैं।  

                - अगर केजरीवाल दिल्‍ली का मोह छोड़कर सीधे लोकसभा की तैयारी करते हैं और पीछे से दिल्‍ली में कुछ ऐसा वैसा हो जाता है तो उनकी हालत हिलते मंच पर खड़े होकर भाषण दे रहे नेताजी जैसी हो जाएगी। नीचे टांगे धूज रही होगी और ऊपर मुंह से बांग निकल रही होगी। 

दिल्‍ली की कुर्सी हाथ में आने के साथ ही केजरीवाल के मुंह में नेवला आ गया है। केजरीवाल ने इससे बचने की बहुत कोशिश की, लेकिन डॉ. हर्षवर्द्धन पहले ही दिन यह तय कर चुके थे कि चूंकि जनता ने पूर्ण बहुमत नहीं दिया है, सो भाजपा सरकार नहीं बनाएगी। भापजा सरकार बनाती तो केजरीवाल को दोहरी सहायता मिलती। दिखाने के लिए 28 एमएलए होते और बोलने और दोषारोपण के लिए एक और जगह खुल जाती। लेकिन अब जिम्‍मेदारी ही सिर पर आ गिरी है। 

यहीं पर आकर फायर ब्रेकर खुद ब्रेक हो रहा है। 

अब इसे मोदी की किस्‍मत कहें या केजरीवाल की बदकिस्‍मती कि प्रधानमंत्री का सपना देख रहे आम आदमी को दिल्‍ली का ऐसा तख्‍त मिला है जिसके नीचे की सारी चूलें हिली हुई है। अब तक जितना बोला है, उतना कर दिखाना तो शक्तिमान के बस में भी नहीं दिखाई दे रहा। कम से कम लोकसभा चुनाव 2014 तक तो कतई नहीं।

मोदी या कहें भाजपा के लिए जरूरी है कि अब केजरीवाल किसी सूरत में दिल्‍ली की राज्‍य सरकार के ही लिपटे रहें। अगर इस काम में भाजपा विफल रहती है तो आम आदमी पार्टी को पूरे देश में फैलने से कोई रोक नहीं पाएगा। 

मोदी आंधी नहीं सत्‍ता के विरोध का दावानल है 
और एक दावानल केजरीवाल को खड़ा किया जा रहा है। 
जिस बिंदू पर दोनों आमने सामने भिडेंगे वहीं दोनों खत्‍म होंगे।

बुधवार, 25 दिसंबर 2013

Social Network Vs Blogging


वर्ष 2006 में पहली बार ब्‍लॉग (Blog) को देखा और वर्ष 2007 में तो इसकी सवारी ही शुरू कर दी। उन दिनों ऑनलाइन लेखन (Online writing) और आज के ऑनलाइन लेखन में दिन रात का अंतर आ गया है। हालांकि पोस्‍ट करने और तुरंत टिप्‍पणियां (Comments) पाने की लालसा और बलवती ही हुई है, लेकिन पहले जितना सटीकता से लिखा जा रहा था, उतनी सटीकता अब नहीं आ पा रही है। कारण स्‍पष्‍ट है कि अब न तो वैसा आराम है न इंतजार। 

ब्‍लॉग की यह खूबसूरत कमी रही है कि हर बार लिखने से पहले सोचने और फिर उसे एडिट (Edit) करने के लिए हमेशा पर्याप्‍त समय रहा। लिखने की जल्‍दबाजी भी नहीं रही। जो लिख दिया, वह तुरंत लोगों की नजर में नहीं आया तो उसे सुधारने या डिलीट तक कर देने के विकल्‍प हमेशा हाथ में रहे। वहीं सोशल मीडिया (Social) में और खासतौर से कहूं तो फेसबुक (Facebook) पर एक बार विचार पोस्‍ट कर देने के बाद डिलीट करने की फुर्सत तक नहीं मिल पाती और लाइक (Like) व कमेंट का दौर शुरू हो जाता है। फिर सोचते हैं यार इतने लोगों ने तो देख लिया अब डिलीट करने से क्‍या फायदा। 

दूसरी तरफ फेसबुक लेखन ने लेखों की लंबाई को लील लिया है। एक विचार पकने से पहले परोसा जाने लगा है। इसका नतीजा कई बार तो यह भी हो रहा है कि मैं सोच कुछ रहा हूं, लिख कुछ रहा हूं और सर्किल में मौजूद लोग उसका अर्थ कुछ और ही लगा रहे हैं। परिणाम यह होता है कि विचार की भ्रूण हत्‍या (Abortion) ही हो जाती है। अब तेज माध्‍यम विचार करने की प्रवृत्ति को उकसाता है, लेकिन विचारों की इस प्रकार की अकाल मृत्‍यु कई बार क्षुब्‍ध कर देती है। 

ब्‍लॉगिंग के शुरूआती दिनों में एक माह में कुल मिलाकर ही तीन या चार पोस्‍ट से ऊपर मेरा आंकड़ा कभी नहीं गया, लेकिन फेसबुक पर तो रोजाना तीन से चार पोस्‍टें हो रही हैं। कई बार मैं खुद को रोकने का प्रयास करता हूं। सोचता हूं कुछ ठहरकर पहले विचार को पक लेने दिया जाए, लेकिन फिर केवल कौतुहल से ही विचार पोस्‍ट होता है कि देखें लोग इस मुद्दे पर क्‍या सोच रहे हैं। नतीजा यह होता है कि पोस्‍ट का ही कबाड़ा हो जाता है। 

सोशल नेटवर्क की एक खूबसूरती यह है कि यह आपको जनता से बीच अधिक से अधिक परोसे जाने का विकल्‍प पेश कर रहा है लेकिन कमी यह है कि चाहने पर भी आप न तो अपनी पूरी बात लिख सकते हैं न लोगों के पास लंबे ख्‍याल पढ़ने का वक्‍त है। 

ब्‍लॉग के जमाने में ब्‍लॉग अखबारों (Newspapers) के रूप में ब्‍लॉगवाणी (Blogvani) और चिठठाजगत (Chitthajagat) ने हम जैसे कई नौसिखियों को पनाह दे रखी थी। हम कुछ भी पोस्‍ट करते, दो या तीन हजार लोगों के समूह तक वह बात पहुंच जाती थी। इसके चलते दूसरे लेखकों और पाठकों के मिलने का सिलसिला बना रहा। इन दोनों ब्‍लॉग एग्रेगेटरों के बंद हो जाने के बाद तो लगा कि अब यहा समय किसके सहारे व्‍यतीत किया जा सकता है। सो आंशिक पलायन कर गए। 

यहां आंशिक इसलिए कहा क्‍योंकि पिछले तीन साल से फेसबुक पर अतिसक्रिय रहने के बावजूद अब तक न तो ब्‍लॉग का प्रेम कम हो पाया है न ही यहां लिखने की चाह खत्‍म हुई है। अब भी जब तक कुछ ऐसा लिखना होता है, जिसे मैं अर्से बाद फिर से देखना चाहूं, तो यहां लिखने चला आता हूं।

देखता हूं कि फेसबुक पर मेरे ही लिखे लेख कालपात्र में समाते जा रहे हैं। सक्रियता में कुछ कमी हुई नहीं कि लोग भूलने लगते हैं। पहले जहां एक पोस्‍ट को मुश्किल से 100 पाठक मिल पाते थे, वहीं अब हर फेसबुक स्‍टेटस (status) को दो से तीन सौ लोग पढ़ रहे हैं। 

फेसबुक प्रोफाइल (profile) पर इसका पता नहीं लगता, लेकिन फेसबुक पेज तो आपको बता देता है कि इतने लोगों की नजर से आपका लेख अब तक निकल चुका है। अब पाठक किसे नहीं चाहिए। समस्‍या तो तब है जब लिखने का अनुशासन आने से पहले पाठक आपसे रूबरू होना शुरू हो जाएं। 

गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

being human with Tablet #Better Way

With enlargement of mobiles and reducing size of laptops i already imagine a solution about 7 to 10 inch device. One fine day i search online and find tablet. Its a old story but not end here. As a group of advance computer application yser we discuss about a perfect tab. 

what should a perfect tab must have? It includ screen resolution, grip, style, storage space, ram, gpu, battery capacity and web connectivity. 

So, after a long discussion and time spent we find some special requirements. Here they are

It's a 7 to 9 inch tablet : What we want to purchase.
1. 3G network OR it may compromise with WiFi
2. Screen resolution must be higher than 768 * 976
3. screen density more than 160 dpi 
4. RAM not less than one GB if we find two GB, it will be better
5. internal storage at least 2 GB
6. Processor should be Quad core or Octa Core (as industry moving into it)
7. Battery capacity must be 6000 mAh, if tab size will enlarge to 9 inch than battery capacity must be 7600 mAh
8. clock speed must be higher than 1.5 GHz
9. All major sensors must be installed. ie axis, compass, light, proximity etc.
10. and last the system must have its Stand. 

Although we look for a complete solution for removing laptop completely from the scene and get a shorter device. but we fond several tabs with lot of accessories. Like tab case, keyboard, mouse, speaker and gadgets surrounds us again. 

Now its a better way if we can found a tablet with stand. so we do not have to carry another case for same work.

As an astrologer i want a handy device which have all qualities but less space. When we are at Jataka's home, I am not feel easy to ask them for a charger or a separate table or other supportive gadgets.  All i imagine that go to the spot analyze, use my tool and tell them what to do.  

Some solution i found in my tiny tablet called Vido mini one. it's a Chinese model. I arrange it through a Chinese connection. But it has its own problem like
No Guarantee
No back support
No software support
No additional gadget support
No battery replacement
No upgraded kernel versions etc. 

NOW i search for a human solution for this advance gadget. Hope i will find one.