कपिल मुनि ने सांख्य दर्शन में जिस निरपेक्ष पुरुष का और शंकराचार्य ने अद्वैतवाद में जिस निगुर्ण, निराकार और निर्लिप्त ब्रह्म का उल्लेख किया है उस सामानन्तर सत्ता से एक आम इंसान अपने प्रयासों से कैवल्य अवस्था प्राप्त कर जुड जाता है। फिर उसे सांसारिक बंधन गौण लगने लगते हैं। पश्चिमी मान्यता में ऐसा कुछ नहीं है जो भौतिक जगत को चुनौती दे सके।
एक बार ओशो ने इसे बहुत खूबसूरती के साथ पेश किया था। उन्होंने कहा कि भारत मे बुद्ध ने देखा कि एक गरीब, दूसरा रोगी, तीसरा मृत और चौथा सन्यासी है। पश्चिम के लोग इस सन्यास को समझ नहीं पाए इसलिए वहां कोई योगी नहीं हुआ।
पश्चिम के अनुसार जो कुछ है सब यहीं पर है। ऐसे में हॉलीवुड की एक फिल्म मैट्रिक्स प्राचीन भारतीय दर्शन और आधुनिक पश्चिमी भौतिकवाद के बीच अद्भुद् सांमजस्य पेश करती है।
मैट्रिक्स मेरी नजर में:
इस फिल्म के पात्रों के नाम भी कुछ इस तरह है जो मौजूदा इंसानों का संबंध दूसरी दुनिया से जोडते हैं।
इस फिल्म के पात्रों के नाम भी कुछ इस तरह है जो मौजूदा इंसानों का संबंध दूसरी दुनिया से जोडते हैं।
नियो: metaphysical world का प्रतिनिधित्व करता है। ट्रिनिटी: भौतिक और अध्यात्मिक जगत के बीच संचरण में नियो की सहायता करती है और अंत में उसका साथ भी छूट जाता है।
मारफीयस: यह जानता है कि नियो होता है और उसे कैसे बाहर निकाला जाता है।
एजेन्ट स्मिथ: भौतिक जगत पर कब्जा करने वाले लोग, इन्हें वायरस माना गया है।
कम्प्यूटर वर्ड: माया के आवरण से ढकी सृष्टि को दिखाने का प्रयास
पूरी फिल्म को एक इंसान के दिमाग और उसके चारों ओर के वातावरण के साथ देखा जाए तो महसूस होता है कि गूढ बातों को कितनी सुंदरता के साथ पेश किया गया है। एक आम इंसान कि तरह “मिस्टर एडम्स” पैदा होता है, पढ लिखकर (पहले से तैयार सिस्टम में) एक बडी कंपनी में मुलाजिम हो जाता है। स्वाभावित चारित्रिक कमजोरियों- डर और लालच के साथ जिंदगी गुजार रहा होता है कि एक दिन:
मारफीयस: यह जानता है कि नियो होता है और उसे कैसे बाहर निकाला जाता है।
एजेन्ट स्मिथ: भौतिक जगत पर कब्जा करने वाले लोग, इन्हें वायरस माना गया है।
कम्प्यूटर वर्ड: माया के आवरण से ढकी सृष्टि को दिखाने का प्रयास
पूरी फिल्म को एक इंसान के दिमाग और उसके चारों ओर के वातावरण के साथ देखा जाए तो महसूस होता है कि गूढ बातों को कितनी सुंदरता के साथ पेश किया गया है। एक आम इंसान कि तरह “मिस्टर एडम्स” पैदा होता है, पढ लिखकर (पहले से तैयार सिस्टम में) एक बडी कंपनी में मुलाजिम हो जाता है। स्वाभावित चारित्रिक कमजोरियों- डर और लालच के साथ जिंदगी गुजार रहा होता है कि एक दिन:
मारफीयस (अंतचेतना) का संदेश आता है जिसमें माया को तोडकर निकल जाने का भाव होता है। शुरू में मिस्टर एडम्स डरता है लेकिन ट्रिनिटी और अन्य गुणों के साए में वह माया का जाल तोडकर दूसरी ‘वास्तविक’ दुनिया में प्रवेश कर जाता है। इसके बाद शुरू होताह एक और संघर्ष-
विश्वास करने का: माया के आवरण से ढकी सृष्टि में क्या वास्तविक है और क्या भ्रम इस बारे में निर्णय करना कतिपय मुश्किल है। लोगों, वस्तुओं और घटनाओं पर कितना यकीन किया जा सकता है और कितना अविश्वास यह भी स्पष्ट नहीं होता।
विश्वास करने का: माया के आवरण से ढकी सृष्टि में क्या वास्तविक है और क्या भ्रम इस बारे में निर्णय करना कतिपय मुश्किल है। लोगों, वस्तुओं और घटनाओं पर कितना यकीन किया जा सकता है और कितना अविश्वास यह भी स्पष्ट नहीं होता।
इस बारे में एक झेन गुरू की कहानी भी है: एक झेन गुरू एक खूबसूरत सुबह जागे और जोर-जोर से रोने लगे। शिष्य सकते में आ गए कि क्या हो गया गुरूजी को। पूछा क्यों रो रहे हैं गुरूजी। तो जवाब मिला कि मैं सपने में तितली बन गया था और खिली धूप में उपवन में फूलों रस चूसता घूम रहा था। इस पर शिष्यों की जान में जान आई। किसी समझदार शिष्य ने कहा गुरूजी वह तो स्वप्न था। यह जवाब सुनकर तो गुरूजी दहाड मारकर रोने लगे। बोले मैं यह तय नहीं कर पा रहा हूं कि वह स्वप्न था कि यह स्वप्न है। इस कहानी में वर्तमान पर अविश्वास करने के बजाय जो वास्तविक है उस पर विश्वास करने की कोशिश की गई है। भारतीय दर्शन में भी जाग्रत अवस्था से तुरीय अवस्था तक चेतना के कई स्तर बताए गए हैं।
अब वापस मैट्रिक्स में चलते हैं: यहां मारफीयस भी मिस्टर एडम्स को नियो बनाने में जुटते हैं और नियो को विश्वास करने के लिए प्रेरित करते हैं। लेकिन इस प्रयास में भी भौतिक रुख कायम रहता है। पता नहीं दर्शको को समझाने के लिए या फिर पश्चिमी मान्यता के कारण। कुछ भी हो मारफीयस का प्रयास रंग लाता है और नियो खुद में विश्वास करने लगता है। भारतीय दर्शन में इस अवस्था को कहते हैं
अहम् ब्रह्मास्मि यानि मैं ही ब्रह्म हूं।
इसके बाद नियो के सामने कम्प्यूटर वर्ड (माया के आवरण वाली दुनिया) धूमिल होने लगती है। अंतत: नियो माया के जाल को तोड देता है। भौतिक और सांसारिक नियमों के टूटने के साथ ही नियो उडने लगता है, गोलियों को रोकने लगता है और बिना साधनों के दोनों दुनियाओं में भ्रमण करने लगता है।
अहम् ब्रह्मास्मि यानि मैं ही ब्रह्म हूं।
इसके बाद नियो के सामने कम्प्यूटर वर्ड (माया के आवरण वाली दुनिया) धूमिल होने लगती है। अंतत: नियो माया के जाल को तोड देता है। भौतिक और सांसारिक नियमों के टूटने के साथ ही नियो उडने लगता है, गोलियों को रोकने लगता है और बिना साधनों के दोनों दुनियाओं में भ्रमण करने लगता है।
... स्वतंत्रता की संभावनाएं...