जनरल स्मट जो नया कानून लागू कर रहे हैं उससे हमारे परिवारों की महिलाएं वेश्याएं और हम सभी नाजायज औलादें घोषित कर दिए जाएंगे। मैं इसका विरोध करता हूं। जान देने के लिए तैयार हूं, लेने के लिए नहीं। मेरे इस तरह के विरोध का शायद उपनिवेशी ताकत पर असर हो। वे मुझे बन्दी बना सकते हैं, मेरी हड्डियां तोड़ सकते हैं और हो सकता है मेरा मृत शरीर ले लें, लेकिन मेरी आज्ञाकारिता नहीं ले सकते।
गांधी फिल्म में दक्षिण अफ्रीका के उस हॉल का नजारा आज भी मुझे आंदोलित कर देता है। बैरिस्टर गांधी ने इसी हॉल से सॉफ्ट प्रोटेस्ट को सत्याग्रह का शक्तिशाली हथियार बना दिया था। आज साठ साल बाद उसी हथियार को सरकार ने आत्महत्या का प्रयास जैसा नाम देकर उसका भद्दा मजाक बना दिया है।
लोकपाल बिल की लड़ाई में आज भारत का आम आदमी खास बना है, तब एक बार फिर उसे इरोम शर्मिला की याद दिलाने का सही वक्त है। हिन्दुस्तान का तहरीर चौक बने जन्तर मन्तर में अन्ना हजारे की भूख ने सरकार की गहरी अंतडि़यों से भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए जरूरी राजपत्र निकलवा लिया। पर, पूर्वोत्तर के लिए स्मट कानून बने सेना के विशेष अधिकार कानून हटाने की मांग लिए इरोम शर्मिला की भूख अब भी अपने ही देश के शीर्ष नेतृत्व और आम जनता की नजरे इनायत का इंतजार कर रही है।
अपने शरीर को अपना हथियार बना चुकी इरोम शर्मिला ने वर्ष 2000 में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशनल पावर एक्ट 1958 का विरोध तब करना शुरू किया जब सेना ने उनके गांव में घुसकर निर्दोष लोगों की हत्या कर दी। तब से अब तक शर्मिला की भूख हड़ताल को आत्महत्या का प्रयास बताकर गांधी के सत्याग्रह का खुला मजाक बना दिया है। पूर्वोत्तर में पृथ्थकवादी ताकतों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए कई क्षेत्र सेना के हवाले कर दिए गए थे। इसके बाद हर खास और आम व्यक्ति सेना की कार्रवाई का शिकार हुआ। मणिपुर में आसाम राइफल के जवानों ने दस लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी। इसके खिलाफ शर्मिला उठ खड़ी हुई। ग्यारह साल होने को आए हैं। शर्मिला और उसका सत्याग्रह चल रहा है। शर्मिला की भूख कहीं उसकी जान न ले ले, इसके लिए पुलिस और प्रशासन उसे लगातार गिरफ्तार रखता है और नली की सहायता से उसे खाना पहुंचाया जा रहा है।
मीडिया ने कई बार शर्मिला की आवाज को उठाया, लेकिन रम्स अदायगी से ज्यादा कुछ नहीं हो पाया। आज अन्ना की सफलता के बाद एक बार फिर दिल्ली के कान बजाने का समय है। समय रहते पुरजोर आवाज उठी तो शायद शर्मिला का अनशन भी खत्म हो जाए...
आइए... भारतवर्ष के एक हिस्से में आम आदमी की मांग को लेकर ग्यारह सालों से सत्य का आग्रह कर रही शर्मिला के लिए अपने हिस्से की चेतना का कुछ अंश अर्पित करें...
कैसे भी...
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फिल्ममेकर कविता जोशी का मार्च 2006 को लिखा गया लेख

